बीज कानून पाठशाला-28 “जब भारत राष्ट्र एक बीज कानून क्यों अनेक ?”

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हलधर किसान इंदौर l बीज कृषि का प्रधान आदान है अतः इसकी गुणवत्ता उत्तम होनी चाहिए ताकि किसान पसीने की कमाई से अधिकतम उत्पादन लेकर राष्ट्र के अन्न भंडार भरे। साथ ही अपना जीवन स्तर ऊँचा करे। भारत सरकार ने वर्ष 1963 में सर्व प्रथम शासकीय क्षेत्र में बीज उत्पादन प्रमाणीकरण एवं विपणन हेतु नेशनल सीड्स कारपोरेशन की स्थापना की और उसके मात्र 3 साल बाद ही बीज अधिनियम-1966, बीज नियम-1968 की रचना की और कालान्तर में बीज (नियन्त्रण) आदेश 1983 बनाया, ताकि बीज की गुणवत्ता उत्तम ही नहीं अति उत्तम हो सके। बीज की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए इन कानूनों में असंख्य प्रावधान हैं परन्तु कृषि विभाग का इन कानूनों के आधार पर बीज गुणवत्ता बनाए रखने में समर्पण का अभाव दिखाई देता है और उन्हें इन कानूनों में अनेक कमियाँ दिखाई देती हैं तथा इन कानूनों को बदलने की आवश्यकता पर जोर देते हैं। इन कानूनों को बदलने के पीछे उनकी अकर्मणयता या अन्य परोक्ष कारण है परन्तु प्रत्यक्षः उद्देश्य किसानों को उच्च ही नहीं उच्चत्तम गुणवत्ता का बीज उपलब्ध कराने का दिखाया जाता है।

  1. महाराष्ट्र राज्य संशोधन विधेयक-2023:-

विगत में महाराष्ट्र सरकार ने विधेयक XLII 2023 के माध्यम से बीज अधिनियम-1966 की धारा-19 में संशोधन कर धारा-19A जोड़ने का प्रस्ताव पास किया जो 04.08.2023 में पास हुआ परन्तु ऑल इंडिया एग्रीकल्चर इनपुट विक्रेता संघ के दबाव में रोकना पड़ा।

2. बीज (हरियाणा संशोधन) बिल 2025:-

हरियाणा सरकार के अति उत्साही अधिकारियों ने भी इसी तरह 20 मार्च 2025 को बीज (हरियाणा संशोधन) विधेयक राज्य विधान मंडल से पास कराया गया। यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि केन्द्र सरकार या राज्य सरकारें जो नये कानून बनाने का इरादा करती है वे उस कानून को बनाने से पहले उसका (Draft) प्रारूप / मसौदा सम्बन्धित वर्ग तक पहुंचा कर उनकी आपत्तियाँ और सुझाव मांगती है। वर्तमान हरियाणा सरकार ने बीज उत्पादकों, बीज विक्रेताओं से ऐसा करना उचित नहीं समझा और इस प्रकार अधिनायक वादी व्यवहार का परिचय दिया।

3. धारा-19 या धारा-19A-

महाराष्ट्र सरकार ने बीज अधिनियम 1966 की धारा-19 में संशोधन करते हुए मूल अधिनियम में धारा-19 (b) और धारा-19 (c) को निरस्त किया जबकि बीज (हरियाणा संशोधन) विधेयक-2025 में धारा-19 भी साथ रही और धारा-19A भी जोड़ी गई और दण्ड के प्रावधान रुपये 500/- को बढा कर प्रथम अपराध घटने पर 10 हजार से 50 हजार रुपये दण्ड एवं 3 माह से 3 साल तक कारावास और द्वितीय बार घटित होने पर 6 माह से 5 वर्ष तक कारावास तथा 25 हजार से 1 लाख रुपये अर्थ दण्ड रखा गया और इस प्रकार भ्रम की स्थिति बना दी।

4. अजमानती एवं संज्ञेय अपराध :-

हरियाणा सरकार ने अति उत्साह दिखाते हुए इस अपराध को गैर जमानती बना दिया अर्थात सैम्पल का परिणाम आने पर तुरन्त विक्रेता के विरूद्ध पुलिस में प्राथमिकी (FIR) दर्ज कराने का प्रावधान बना दिया। ध्यान रहे सरकार ने इन्हीं दिनों कीटनाशी (हरियाणा संशोधन) बिल 2025 भी पास किया परन्तु उसमें इस तरह अपराध को अजमानतीय तथा संज्ञेय (Cognizable) नहीं माना है।

5. राज्य द्वारा कानून बनाने की प्रक्रिया :-

राज्य द्वारा कानून बनाने की प्रक्रिया में भारत के संविधान के अनुसार राज्य सूचि और समवर्ती सूचि में दिये गये विषयों पर कानून बना सकता है और विधान सभा से पास होने पर राज्यपाल के पास स्वीकृति हेतु भेजा जाता है। यदि राज्यपाल सहमत न हो तो उसे अपने पास असीमित समय तक नहीं रख सकता बल्कि निकट भूतकाल में उच्चतम न्यायालय ने बताया कि राज्यपाल को विधेयक 3 माह से ज्यादा नहीं रखना है। आपत्तियाँ लगा कर पुनः विधान सभा को लौटाने पर विधान सभा उस पर पुनः विचार करेगी और राज्यपाल द्वारा उठाई गई आपत्तियाँ या सुझाव पर सदन की सहमति बनती है या बिना सहमत हुए विधेयक को राज्यपाल के पास दोबारा भेजा जाता है तो राज्यपाल को उस विधेयक को स्वीकृति देनी ही होगी। राज्यपाल की स्वीकृति मिलने पर विधेयक अधिनियम बन जाता है।

6. बीज (हरियाणा संशोधन) विधेयक 2025 :-

इस विधेयक में यह भिन्नता है कि हरियाणा सरकार ने कोई नया विधेयक नहीं बनाया बल्कि केन्द्र सरकार के द्वारा रचित बीज अधिनियम-1966 की धारा-19 में संशोधन किया अतः यह विधेयक राज्यपाल हरियाणा के हस्ताक्षर होने से पूर्व राष्ट्रपति से बीज अधिनियम-1966 में संशोधन करने की स्वीकृति लेना आवश्यक है। विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति हेतु भेजा गया। राष्ट्रपति कार्यालय ने गृह मन्त्रालय के माध्यम से कृषि एवं कृषक कल्याण मन्त्रालय भारत सरकार से राय मांगी। कृषि मन्त्रालय के तहत बने केन्द्रीय बीज प्रमाणीकरण बोर्ड CSCB और उस के तहत बनी केन्द्रीय बीज समिति CSC (Central Seed Committee) ने राय दी। सैन्ट्रल सीड कमेटी केन्द्र द्वारा कृषि कानूनों / प्रमाणीकरण विषयों पर केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार को सलाह देती है और इसी क्रम में यह विधेयक CSC के पास विचार करने हेतु गया।

7. केन्द्रीय बीज समिति द्वारा मंथन :-

केन्द्रीय बीज समिति ने 25.05.2025 को श्री एम. गुणशेखरण, उपायुक्त (बीज) ने अपने पत्र संख्या 21-1/2025/SD के द्वारा अपनी सिफारिशें श्री वी. के. पटनायक, अवर सचिव, गृह मन्त्रालय को भेज दी तथा निम्न व्यवस्था दी। भारत के संविधान में राज्य और केन्द्र द्वारा कानून बनाने के विषय 7वीं अनुसूचि (Schedule) में व्यक्त है। इस अनुसूचि को पुनः 3 भागों में बांटा गया है:-

(1) केन्द्रीय विषयों पर कानून की सूचि जैसे रेलवे, वित्त, हवाई यातायात, रक्षा, विदेश नीति आदि।

(2) राज्य अनुसूचि में राज्य सरकारें कानून बना सकती है जैसे लोक व्यवस्था, कारागार, लोक स्वास्थ्य आदि-2

(3) समवर्ती अनूसूचि इसमें ऐसे विषय हैं जिन पर राजय और केन्द्र दोनों कानून बना सकते हैं जैसे विवाह विच्छेद, कृषि, वन, वन्य जीव आदि।

राष्ट्रीय सूचि के बिन्दु 42 पर व्यापार एवं वाणिज्य दर्शाया गया है अर्थात व्यापार एवं वाणीज्य पर कानून बनाने का अधिकार केन्द्र सरकार का है। बीजों की नई किस्में भारत के प्रत्येक कृषक की पहुंच में हो तो बीज उत्पादन एवं विक्रय अन्तर राज्यीय व्यापार एवं वाणिज्य की श्रेणी में आता है। बीज विषय पर कानून बनाने का अधिकार केन्द्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। बीज कृषि के अन्तर्गत आता है।

कृषि बारे केन्द्र और राज्य सरकार कानून बना सकती है परन्तु यदि राज्य विधान मंडल और लोक सभा द्वारा बनाए गये कानूनों में असंगती /टकराव (Inconsistancy) उत्पन्न होती है तो संविधान के अनुच्छेद 254 के अनुसार भारत सरकार का बीज अधिनियम 1966 राज्य सरकार द्वारा रचित बीज कानून पर प्रभावी होगा अर्थात केन्द्रीय कानून ही मान्य होगा अतः हरियाणा सरकार द्वारा बीज अधिनियम में संशोधन राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृति देने लायक नहीं है। यदि राज्य सरकारें इस प्रकार बीज कानूनों में संशोधन करेगी या नये बीज कानून बनाएगी तो बीजों के इन्टर स्टेट व्यापार पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। बीज की गुणवत्ता के लिये बीज अधिनियम-1966 तथा बीज विक्रय नियमन के लिये बीज नियन्त्रण आदेश-1983 पूरे भारत में पहले से ही लागू है तथा हर राज्य सरकार द्वारा बीज कानून बनाने पर अव्यवस्था उत्पन्न हो सकती है।

8. नया केन्द्रीय बीज कानून :-

बीज व्यापार एवम् वाणिज्य में समरसता बनी रहे और निर्वाध गति से चले इसके लिये केन्द्रीय बीज समिति ने साथ ही यह भी बताया है कि बीज अधिनियम-1966 की जगह नया केन्द्रीय बीज अधिनियम लाने की तैयारियाँ तेज कर दी है। वास्तव में बीज अधिनियम 1966 को बने लगभग 59 वर्ष होने को है और इस काल खण्ड में विभिन्न नयी तकनीकि आई, कृषि प्रणाली में बदलाव, सरकार की कृषि परक नीतियों में आमूल परिवर्तन के कारण नया बीज अधिनियम लाना आवश्यक हुआ। वास्तव में केन्द्र सरकार तो इस बारे काफी संवेदनशील है और नये बीज अधिनियम की रचना के लिये श्री साहिब सिंह वर्मा तत्कालीन लोकसभा सदस्य की रहनुमाई में वर्ष 2000 में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक / कृषकों से मिले तथा नया कानून बनाने की शुरूआत हुई। इस विधेयक के 2002, 2004, 2010, 2015 तथा 2019 के प्रारूप लोकसभा में प्रस्तुत किये परन्तु किन्हीं कारणों वश पास नहीं हो सके। अब वर्तमान केन्द्रीय कृषि मन्त्री माननीय शिवराज सिंह जी आश्वस्त कर रहे हैं कि शीघ्र एक केन्द्रीय बीज कानून लायेंगे और राज्यों द्वारा लाये गये या संशोधित करे बीज कानूनों से टकराव हटेगा और बीज जो अर्न्तराजीय व्यापार एवं वाणिज्य की श्रेणी में आता है निर्वाध गति से चलेगा।

9. कीटनाशी (हरियाणा संशोधन) विधेयक-2025 :-

बीज (हरियाणा संशोधन) विधेयक-2025 के साथ ही कीटनाशी (हरियाणा संशोधन) विधेयक-2025 भी मार्च 2025 को ही पारित किया था। वह भी भारत सरकार के कीटनाशी अधिनियम 1968 की धाराओं में संशोधन किया था और इसी तर्ज पर यह भी निरस्त हो सकता है।

10. हरियाणा बागवानी नरसरी विधेयक 2025 :-

श्री शिवराज सिंह, कृषि मन्त्री, भारत सरकार द्वारा दिए गये आश्वासन कि Seed Act 2019 या नया केन्द्रीय बीज अधिनियम शीघ्र आयेगा तो हरियाणा बागवानी नरसरी विधेयक-2025 पर प्रभावी हो जायेगा क्योंकि केन्द्रीय बीज अधिनियम में बागवानी नरसरी विषय पहले से ही सम्मलित है।

11. वापसीपथ:-

केन्द्रीय बीज समिति कृषि मन्त्रालय गृह मन्त्रालय राष्ट्रपति → हरियाणा सरकार के पास यह अस्वीकृति जायेगी और विधेयक निष्प्रभावी रहेगा। इस विधेयक के अस्वीकृत होने से अब अन्य राज्य सरकारें भी ऐसे कानून बनाने के लिये नहीं फड़फड़ायेंगी।

12. उत्पादक एवं विक्रेताओं के मध्य खाई :-

बीज (हरियाणा संशोधन) विधेयक-2025 के कारण अपने हितों की खाई बन गई जो पाटना असम्भव लग रहा है। बीज उत्पादक और विक्रेता एक दूसरे के पूरक हैं और इनका स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है दोनों के हित सांझे हैं अतः इनको एक दूसरे की पीडा को समझ कर साथ रहना उचित रहेगा और संघर्ष की स्थिति में प्रभाव ज्यादा पड़ेगा। कुरूक्षेत्र में की गई मिटिंग में यह स्पष्ट परिलक्षित भी हुआ है। यहाँ यह उल्लेख करना आवश्यक है कि हरियाणा राज्य के बीज व्यापारियों के इस आन्दोलन में सभी राज्यों तथा बीज संस्थाओं से भरपूर समर्थन मिला क्योंकि बीज व्यापार अन्तर राजीय विषय है और उनका व्यापार भी इस धक्केशाही से प्रभावित होगा। अतः ‘एक राष्ट्र एक बीज कानून की अवधारणा को फलीभूत करना है। यह पूरे बीज उद्योग की सफलता है।

लेखक-

आर.बी. सिंह, बीज कानून रत्न, एरिया मैनेजर (सेवानिवृत) नेशनल सीड्स कारपोरेशन लि० (भारत सरकार का संस्थान) सम्प्रति ‘कला निकेतन’, ई-70, विथिका-11, जवाहर नगर, हिसार-125001 (हरियाणा), दूरभाष सम्पर्क-79883-04770, 94667-46625 (WhatsApp)

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श्री दुबे की प्रतिक्रिया

इसके लिए संगठन की ओर से यह सुझाव है कि लैब जिलों के लिए निर्धारित कर कर दी गई है वह गलत है इससे कंपनियों को पहले से ही मालूम पड़ जाता है कि नमूना कहां जा रहा है और उसमें सेटिंग की गुंजाइश रहती है और लोकल कंपनियां सेटिंग करके अपना नमूना पास करवा लेती है जबकि बड़ी एवं मल्टीनेशनल कंपनिया जो कि अपने उत्पाद को सही रखती है उनके सैंपल जानबूझकर फेल किए जाते हैं तो यह व्यवस्था बन्द की जावे और स्थानीय अधिकारी पर छोड़ जावे कि वह किस लैब में भेज रहा है

*साथियों* *पिछले* *दिनों हरियाणा सरकार ने बीज अधिनियम में बदलाव का प्रस्ताव रखा था जिस को गंभीरता से बारीकी से नहीं देखा गया नहीं समझा गया और हमारा भारत एक कृषि प्रधान देश है और हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी कृषि उत्पादन में हम जो है अग्रणी है ऐसा नहीं है कि हमारा कृषि उत्पादन दिन प्रतिदिन साल दर साल घट रहा हैउसके बावजूद भी देश के अलग-अलग प्रांत अलग-अलग कानून की कृषि आदान  बीज हो कीटनाशक हो फर्टिलाइजर हो उसमें बदलाव की बात करेंगे तो जो कृषि प्रधान देश है उसमें जो उन्नति प्रगति तरक्की हो रही है वहां रुकावट आ जाएगी या उसमें कमी आ जाएगी ऐसा ना करते हुए और जबकि हमारा भारत राष्ट्रएक है तो बीज कानून अनेक क्यों इस पर गंभीरता से विचार करना होगा जल्दबाजी में लिए गए निर्णय सफल नहीं होते हैं हम ऑल इंडिया एग्री इनपुट डीलर एसोसिएशन नई दिल्ली मध्य प्रदेश कृषि आदान विक्रेता संघ भोपाल देश के प्रदेश के समस्त जिलों के कृषि आदान पदाधिकारी वसदस्य शासन से मंत्रालय से विभाग से निवेदन करते हैं कि इन मामलों में गंभीरता से निर्णय लिया जाए और दूर दृष्टि रखकर किसान हित में देश के कृषि उत्पादन हित में सोच कर जो भी किया जाए वह उचित होगा श्री।मान सिंह जी राजपूत प्रदेश अध्यक्ष श्री संजय रघुवंशीजी राष्ट्रीय प्रवक्ता व प्रदेश सचिव श्री कृष्णा दुबे उपाध्यक्ष मध्य प्रदेश कृषि आदान विक्रेता संघ भोपाल अध्यक्ष जागरूक कृषि आदान विक्रेता संघ जिला इंदौर*

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