हलधर किसान। पिछले दो दशकों में पृथ्वी के महासागरों का रंग काफी बदल गया है। इस बदलाव के पीछे का कारण जलवायु परिवर्तन है। आज के समय जलवायु परिवर्तन ने हमारे ग्रह के महासागरों के 56 फीसदी से ज्यादा हिस्से को प्रभावित किया है। यह हमारे ग्रह पर कुल जमीनी क्षेत्रफल से भी ज्यादा है। पृथ्वी के महासागरों का रंग इसके पानी में मौजूद जीवों और खनिजों का रिफ्लेक्शन होता है। समुद्र के रंग में बदलाव इंसानी आंखों को नहीं दिखाई दे रहा है। लेकिन डेटा के मुताबिक यह साफ है कि समुद्री पारिस्थितिक तंक्र में परिवर्तन हो रहा है। हालांकि समुद्र के पारिस्थितिक तंत्र में क्या बदलाव हो रहे हैं, यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पाया है। हालांकि इसका पता लगाने वाली टीम का मानना है कि निश्चित रुप से इसके लिए मानव गतिविधि और जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार हैं। सेंटर फॉर ग्लोबल चेंज साइंस की सह-लेखक और वरिष्ठ शोध वैज्ञानिक स्टेफनी डट्किविक्ज ने एक बयान में कहा, ‘मैं वर्षों से सिमुलेशन चला रही हूं, जो मुझे बता रहे हैं कि समुद्र के रंग में बदलाव होने वाले हैं। वास्तव में ऐसा होते देखना हैरान करने वाला नहीं बल्कि भयावह है।’
समुद्र को कैसे मिलता है रंग
समुद्र के रंग का इस्तेमाल इसकी ऊपरी परतों में क्या है, इसका आकलन करने के लिए किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर गहरा नीला पानी जीवन के न होने का संकेत देता है। जबकि हरा पानी फाइटोप्लांकटन नामक पौधे जैसे रोगाणुओं के बारे में संकेत देता है। इसमें पत्तों को हरा रंग देने वाला क्लोरोफिल होता है। फाइटोप्लांकटन सूर्य के प्रकाश के जरिए प्रकाश संश्लेषण करता है। ये पौधे छोटे मछलियों का भोजन बनते हैं और वे बड़ी मछलियों का पेट भरते हैं।
सैटेलाइट डेटा का हुआ इस्तेमाल
प्रकाश संश्लेषण में पौधे वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को खींच सकते हैं। चूंकि यह एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है, ऐसे में वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन के कारण इसकी प्रतिक्रिया की निगरानी करते हैं। शोध के प्रमुख लेखक और राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक बी.बी. कैल, ने कहा कि समुद्र के रंग में बदलाव इंसानी की ओर से पर्यावरण को पहुंचाए जा रहे नुकसान को दिखाते हैं। शोध के लिए वैज्ञानिकों ने एक्वा सैटेलाइट के 20 वर्ष के डेटा का इस्तेमाल किया है।
जमीन ही नहीं समुद्र में भी दिखने लगा जलवायु परिवर्तन का असर, बदल रहा महासागरों का रंग

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