हलधर किसान / देश में मुख्य फसलों की खेती में सोयाबीन का उच्च स्थान है, क्योंकि यह खाद्य सुरक्षा में अहम योगदान देती है. खरीफ मौसम की इस फसल पर अगस्त माह आते ही रोगों और कीटों का प्रकोप सताने लगता है. ऐसे में आपको यह जानने की बेहद जरूरत है कि इस समय में सोयाबीन की फसलों का ख्याल कैसे रखा जाए.
- लगातार वर्षा होने की स्थिति में अपने खेत से अतिरिक्त जल-निकासी की व्यवस्था सुनिश्चित करें.
- अपने खेत की नियमित निगरानी करें एवं 3-4 जगह के पौधों को हिलाकर देखें कि क्या आपके खेत में किसी इल्ली/कीट का प्रकोप हुआ है या नहीं.
- सोयाबीन की फसल में कीटनाशक एवं खरपतवारनाशक के मिश्रित उपयोग का संयोजन अभी तक केवल नीचे दिए गए कीटनाशक एवं खरपतवारनाशक के लिए ही अनुशंसित किया गया हैं.
- बस्ता स्प्रेयर का 450 लीटर प्रति हेक्टेयर और 120 लीटर प्रति हेक्टेयर पॉवर स्प्रेयर का छिड़काव करें
- कीटनाशक या खरपतवारनाशक के छिड़काव के लिए पानी की अनुशंसित मात्रा का उपयोग करें.
- रोगवाहक कीट यानी सफ़ेद मक्खी के नियंत्रण के लिए अपने खेत में विभिन्न स्थानों पर पीला स्टिकी ट्रैप लगाएं.
- किसानों को यह सलाह दी जाती है कि कीटनाशक के छिड़काव हेतु कोन नोजल जबकि खरपतवारनाशक के छिड़काव हेतु फ्लड जेट/फ्लैट फेन नोजल का उपयोग करें.
- सोयाबीन की फसल में पक्षियों को बैठने हेतु “T” आकार के बर्ड-पर्चेस लगाये इससे कीट-भक्षी पक्षियों द्वारा भी इल्लियों की संख्या कम करने में सहायता मिलती है.
- किसी भी प्रकार का कृषि-आदान क्रय करते समय दूकानदार से हमेशा पक्का बिल लें जिस पर बैच नंबर एवं एक्सपायरी दिनांक स्पष्ट लिखा हो.
- सोयाबीन का जैविक उत्पादन लेने वाले किसान, पत्ती खाने वाली इल्लियों से फसल की सुरक्षा एवं प्रारंभिक अवस्था में रोकथाम हेतु बेसिलस थुरिन्जिएन्सिस अथवा ब्युवेरिया बेसिआना या नोमुरिया रिलेयी (0ली/हेक्टे) का प्रयोग करें.
- सोयाबीन फसल में तम्बाकू की इल्ली और चने की इल्लियों के प्रबंधन हेतु बाजार में उपलब्ध कीट विशेष फेरोमोन ट्रैप या प्रकाश प्रपंच लगाए.
- सोयाबीन में फसल प्रबंधन (खरपतवार, कीट एवं रोग नियंत्रण) हेत सलाह खरपतवार नियंत्रण के लिए अभी तक किसी भी प्रकार के खरपतवारनाशकों का प्रयोग नहीं करने वाले किसानों को सलाह हैं कि 15-20 दिन की फसल होने पर सोयाबीन के लिए अनुशंसित खड़ी फसल में उपयोगी किसी एक रासायनिक खरपतवारनाशक का छिड़काव करें (आप इसके लिए नीचे दी गई तालिका की सहायता ले सकते हैं).
सोयाबीन में फसल प्रबंधन कैसे करें
- जिन किसानों ने बोने के पूर्व या तुरंत बाद उपयोगी खरपतवारनाशकों का अभी तक प्रयोग नहीं किया हैं उन्हें सलाह हैं कि वो कीटनाशकों के साथ खरपतवारनाशक को मिलाकर छिड़काव करे
(2) खरपतवारनाशक: इमाज़ेथापायर 10 एस.एल (1 ली/हे) या क्विजालोफोप इथाइल 5 ई.सी (1 ली/हे)
- तना मक्खी के नियंत्रण हेतु सलाह हैं कि कीटनाशक थायोमिथोक्सम 60% + लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 09.50% जेड.सी. (125 मिली./हे.) का छिड़काव करें.
- तम्बाकू की इल्ली के नियंत्रण हेतु निम्न में से किसी एक कीटनाशक का छिड़काव करने की सलाह है. इससे पत्ती खाने वाली अन्य इल्लिया का भी नियंत्रण होगा.
- इसके लिए आपको लैम्बडा सायहेलोथ्रिन सी.एस. (300 मिली/हे) या क्विनालफॉस 25 ई.सी. (1 ली/हे) या क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल एस.सी (150 मिली/हे) या इमामेक्टिन बेंजोएट (425 मिली/हे) या ब्रोफ्लानिलिड़े एस.सी. (42-62 ग्राम/हे) या फ्लूबेडियामाइड डब्ल्यू.जी. (250-300 ग्राम/हे) या फ्लूबेडियामाइड एस.सी (150 मिली/हे) या इंडोक्साकार्ब एस .सी. (333 मिली/हे) या प्रोफेनोफॉस ई.सी. (1 ली/हे) या स्पायनेटोरम एस.सी (450 मिली/हे) या टेट्रानिलिप्रोल एस.सी. (250-300 मिली/हे) का इस्तेमाल कर सकते हैं.
- तना मक्खी के नियंत्रण हेतु सलाह हैं कि कीटनाशक थायोमिथोक्सम 60% + लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 09.50% जेड.सी. (125 मिली./हे.) का छिड़काव करें.
- तम्बाकू की इल्ली के नियंत्रण हेतु निम्न में से किसी एक कीटनाशक का छिड़काव करने की सलाह है. इससे पत्ती खाने वाली अन्य इल्लिया का भी नियंत्रण होगा.
- इसके लिए आपको लैम्बडा सायहेलोथ्रिन सी.एस. (300 मिली/हे) या क्विनालफॉस 25 ई.सी. (1 ली/हे) या क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल एस.सी (150 मिली/हे) या इमामेक्टिन बेंजोएट (425 मिली/हे) या ब्रोफ्लानिलिड़े एस.सी. (42-62 ग्राम/हे) या फ्लूबेडियामाइड डब्ल्यू.जी. (250-300 ग्राम/हे) या फ्लूबेडियामाइड एस.सी (150 मिली/हे) या इंडोक्साकार्ब एस .सी. (333 मिली/हे) या प्रोफेनोफॉस ई.सी. (1 ली/हे) या स्पायनेटोरम एस.सी (450 मिली/हे) या टेट्रानिलिप्रोल एस.सी. (250-300 मिली/हे) का इस्तेमाल कर सकते हैं.

सोयाबीन का वाणिज्यिक उत्पादन
भारत में, इस दलहन तिलहन का व्यावसायिक उत्पादन 60 के दशक के मध्य के बाद शुरू हुआ, जिसमें भारत सबसे आगे रहा और उसके बाद नेपाल का स्थान रहा था.
बता दें कि 70 के दशक की शुरुआत में, मध्य प्रदेश में सोयाबीन की खेती का क्षेत्रीय प्रसार लगभग 7,700 हेक्टेयर था, इसके बाद उत्तर प्रदेश (5,900 हेक्टेयर) और महाराष्ट्र (1800 हेक्टेयर) का स्थान था. वहीं आज, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान मिलकर देश में सोयाबीन की खेती और उत्पादन के क्षेत्र में 96% से अधिक का योगदान करते हैं.