छंटलगांव गौशाला से शुरु हुई मुहिम, बढ़ेगी गौशाला की आय
हलधर किसान खरगोन। सामाजिक संस्था निरंजनलाल अग्रवाल फाउंडेशन केके फायबर्स ने गौशालाओंं में बिस्ताराखाद बनाने का प्रशिक्षण देने की मुहिम छेड़ी है। फांउडेशन द्वारा संचालित परियोजना के 284 गांवों में कार्यकर्ता व पदाधिकारी न केवल गौशालााओं में बिस्ताराखाद बनाने का प्रशिक्षण दे रहे है बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों को इसका उपयोग खेती में करने के लिए भी प्रचार. प्रसार कर रहे है।
फाउंडेशन के आशुतोष अग्रवाल ने बताया कि खेती में जैविक खाद को बढ़ावा देने एवं गौशालाओं में गाय के गोबर को आय का जरिया बनाने के उद्देश्य से फाउंडेशन के माध्यम से गौशालाओं में गोबर से जैविक खाद (बिस्ताराखाद) तैयार करने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। गाय के गोबर की मदद से बनने वाली जैविक खाद (देशी खाद) फसलों के लिए लाभकारी होगी। रासायनिक खाद के अधिक प्रयोग से खेत की उर्वरा शक्ति घट रही है। जैविक खेती के लिए सरकार कई योजना चला रही है, लेकिन उम्मीद के हिसाब से गोबर न मिलने से किसान रासायनिक खाद का प्रयोग करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। गोशाला में वर्मी कंपोस्ट बनने से आस.पास के किसानों को कम दाम पर देशी खाद मिल जाएगी। इससे जैविक खेती को जहां बढ़ावा मिलेगा, वहीं गौशाला को आय के साधन उपलब्ध हो सकेंगे। गौशाला संचालक भी इस ओर रुचि लेते दिखाई दे रहे है। प्रयोग सफल होने पर जिले में जैविक खाद उपयोग को बढ़ावा मिलेगा। अग्रवाल ने बताया कि गौशालाओं में सैंकड़ों गोवंश रहते हैं। जिनसे प्रतिदिन करीब क्विंटलो गोबर निकलता है। उसके रख.रखाव को लेकर संचालक को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। गोबर से खाद बनाने लगेंगे तो गोबर का निस्तारण भी आसान हो जाएगा। जिले के ग्राम छटलगांव (खेडा) स्थित गौशाला से इस मुहिम की शुरुआत हुई है। प्रयोग के तौर पर कर्मचारियों ने खाद बनाने की पूरी प्रक्रिया आसान तरीके से समझाई गई। यहां मौजूद गौशाला प्रमुख लोकेन्द्र सेन ने इस मुहिम की सराहना करते हुए कहा कि वह बिस्तारा खाद तैयार करने को लेकर उत्सुक है।
ऐसे तैयार होगी बिस्तारा खाद
परियोजना प्रबंधक गौरव कुमार निखोरिया ने बताया की यह खाद बनाने के लिए मुख्य रूप से 1 किलोग्राम माध्यम कल्चर, 500 लीटर पानी, 1 ट्राली कच्ची गोबर खाद, 5 से 10 किलो नीम की पत्ती, 5 से 10 किलो अकाव पत्ती, 1 से 5 लीटर तक गौमूत्र, 10 किलो तक चूले की राख और 5 से 10 किलो अन्य सुखा या गिला कचरा उपलब्ध होने चाहिए। 60 से 70 दिनों के बाद यह खाद हमें पूरी तरह पकी हुई प्राप्त होती है, जिसमे बहुतायत मात्र में सूक्ष्म पोषक तत्व मौजूद रहते है। इसके छिडकांव से भूमि की उर्वरा शक्ति हमेशा बनी रहती है और यह पशुपालक किसानो द्वारा बनायी जा सकती है, इसको बनाना बहुत ही असान है। गौशाला में बिस्ताराखाद प्रक्रिया के दौरान निरंजनलाल फाउंडेशन के मुकेश चौहान, शेलेन्द्र बिरला, जितेन्द्र जयसवाल, विजय प्रजापत, सचिन चौहान, संजय कदम, सायबा डाबर एवं गजानंद कलमे मौजूद थे।