देजला.देवाड़ा जलाशय में जलपरी की अनोखी खेती

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केज कल्चर से 8000 वर्गफीट में मछलीपालन, तैरती हट व बोट से चोरों पर नजर रखते हैं मछुआरे

हलधर किसान, खरगोन। प्रदेश के भगवानपुरा स्थित देजला.देवाड़ा जलाशय में केज कल्चर से मछलीपालन के नवाचार की शुरुआत हुई है। मछली चोरी से परेशान मछुआरों ने मत्स्य विभाग की मदद से 8000 वर्ग फीट में 48 केज बनाकर उसमें तीन तीन ग्राम के 80 हजार मछली के बीज डाले हैं। तालाब के बीच 16 बाई 16 फीट की तैरती झोपड़ी (हट) भी बनाई है। एक इंजिन बोट भी अनुदान से खरीदी है। जिससे पानी में रहकर चोरों से निगरानी की जा रही है। 3 माह में मछली 130 ग्राम की हो गई है। 1 किग्रा तक वजन होने पर मछली बाहर भेजी जाएगी। मछुआरे लगभग 40 मेट्रिक टन मछली उत्पादन की संभावना जता रहे हैं। इंदौर संभागायुक्त ने देजला.देवाड़ा सिंचाई जलाशय में आदिवासी मत्स्योद्योग सहकारी संस्था देजला.देवाड़ा जलाशय को 391 हेक्टेयर में 10 साल के लिए लीज पर दिया है। मछुआरे पिछले 20 सालों से परंपरागत जाल लगाकर मछलीपालन कर रहे थे। चोरी होने से कोई खास मुनाफा नहीं हो रहा था। मत्स्य विभाग ने संस्था के 104 सदस्यों की बैठक लेकर प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत मछली पालन के लिए प्रेरित कर आधुनिक मछली पालन शुरू कराया है। इसी तरह खारक जलाशय में भी 60 केज मछलीपालन व देजला देवाड़ा जलाशय में संभागीय मत्स्य प्रशिक्षण केंद्र का प्रस्ताव भोपाल भेजा है।
चोरी के घाटे को मुनाफे से बदलने तरीका अपनाया
जिला मत्स्य अधिकारी रमेश मौर्य ने बताया कि आदिवासी मत्स्योद्योग सहकारी संस्था देजला.देवाड़ा के 104 सदस्य केज कल्चर की आधुनिक फिशिंग कर रहे हैं। उन्हें बैठक लेकर समझाइश दी गई। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना में 60 प्रतिशत अनुदान है। समिति को 86.40 लाख रुपए अनुदान मिला। वे 20 साल से परंपरागत मछली पालन कर रहे थे। चोरी के कारण मुनाफा नहीं ले पा रहे थे। केज कल्चर की नीली क्रांति से 100 प्रतिशत मुनाफे की गारंटी है। केज कल्चर के अलावा तालाब से जिस तरह मछली पालन किया जाता रहा है। वह निरंतर जारी रहेगा।
8 हजार वर्गफीट में तैर रहे है 48 केज
तालाब के बीच में 48 केज स्थापित गए। प्रत्येक 96 घन मीटर (4 गुना 4 गुना 6) का है। इनमें 25 मई 23 को 3.3 ग्राम के 80 हजार पंगेसियस मछली बीज डाले। अब 130 ग्राम की मछली हो गई है। 7 माह में 1.1 किग्रा के बीज हो जाएंगे। मत्स्य अधिकारी ने बताया कि देजला.देवाड़ा जलाशय को संभाग स्तर के केज प्रशिक्षण के लिए विकसित किया जाएगा। जिले के खारक, अंबकनाला, सतसोई व अपरवेदा जलाशयों में भी मछलीपालन की संभावनाएं है।
क्या है केज कल्चर
केज एक्वा कल्चर के तहत मौजूदा जल संसाधनों के भीतर ही मत्स्यपालन होता है। यह एक जलकृषि उत्पादन प्रणाली है, जो फ्लोटिंग फ्रेम, जाल और मूरिंग सिस्टम से बनी होती है, जिसमें बड़ी संख्या में मछलियों को पकडऩे व पालने के लिए एक गोल या चौकोर तैरता जाल होता है। इसे जलाशय, नदी, झील या समुद्र में स्थापित किया जाता है। केज एक्वा कल्चर से मछली को ऑक्सीजन व अन्य प्राकृतिक स्थितियां प्रदान करते हैं।
केज कल्चर के फायदे
. मछली चोरी की शंका नहीं है।
. बीमारी में तुरंत इलाज होगा।
. बीज भी केज में ही तैयार होगा।
. मांग पर मछली निकाल सकेंगे।

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