एग्रो इनपुट डीलर एसोसिएशन ने एक्सपायरी नैनो यूरिया बिक्री पर जताई आपत्ति, शिकायती पत्र के बाद बाजार से माल वापस उठाने के जारी हुए निर्देश
हलधर किसान. इंदौर, श्रीकृष्ण दुबे। देशभर में जहां यूरिया का विकल्प तलाशने पर जोर दिया जा रहा है, वही बिहार राज्य में एक्सपायर हो चुके नैनो यूरिया की बिक्री का मामला सामने आया है। ऐसे में किसानों के सामने अब यह सवाल खड़ा हो गया है कि वह इस लिक्विड का फसलों पर छिडकांव करें या कुड़ेदान में फेंक दें।
यह मामला कृषि आदान विक्रेताओं के सबसे बड़े संगठन एग्रो इनपुट डीलर एसोसिएशन के सामने आने के बाद एसोसिएशन ने तत्काल इस मामले में संज्ञान लेकर डायरेक्टर एग्रीकल्चर को शिकायती पत्र भेजकर इफ्को द्वारा उपलब्ध कराए जा रहे नैनो यूरिया एवं अन्य उत्पाद टेकिंग का एक्सपायर हो चुका माल बाजार उसे वापस उठाने की मांग की है।
कृषि आदान विक्रेता संघ सचिव संजय कुमार रघुवंशी ने बताया कि एसोसिएशन के शिकायती पत्र का असर भी हुआ है और कृषि डायरेक्टर ने इस मामले में संज्ञान लेते हुए इफको के प्रदेश मुख्य विपणन प्रबंधक को निर्देश दिया है कि वह बिहार में नैनो यूरिया एवं अन्य उत्पाद जो कि अवधि समाप्त हो चुके हैं, इसकी जानकारी तत्काल पोर्टल पर उपलब्ध कराएं एवं उसे व्यापारियों से उठाकर उसके बदले में नया उत्पाद देने की तत्काल व्यवस्था करें ताकि यह उत्पादन किसानो तक नहीं पहुंच सके।

बिहार के किसानों की मानें तो रघुनाथपुर स्थित बिस्कोमान से उनको यूरिया व डीएपी की बोरी के साथ जबरन 225 रुपये का नैनो यूरिया दिया जा रहा है, जो एक साल व दो साल पहले ही एक्सपायर हो चुका है। नैनो यूरिया न लेने पर किसानों को यूरिया भी नहीं दिया जा रहा है।
अन्य राज्यों में भी संगठन ने लिखे पत्र
मध्य प्रदेश कृषि आदान विक्रेता संघ के प्रदेश अध्यक्ष मानसिंह राजपूत ने बताया कि मध्य प्रदेश सरकार को भी पत्र लिखा जा चुका है उर्वरक निर्माता कंपनियों द्वारा यूरिया, डीएपी एवं अन्य उर्वरकों के साथ जो भी उत्पाद टैगिंग करके जबरन दिया गया है,
यदि उसकी उपयोग करने की अवधि समाप्त हो गई है तो उसे सम्बंधित कंपनी द्वारा वापस लिया जाना चाहिए एवं उसके बदले में नया उत्पाद देना चाहिए ताकि किसानों को उसका पूरा फायदा हो सके और व्यापारियों को भी नुकसान नहीं हो।
एसोसिएशन ने इस मामले में नाराजगी भी जताई कि इफ्को शासकिय कंपनी होने से एक्सपायरी माल बिक्री के बाद भी कोई कार्रवाई नही हुई है, यदि कोई निजी कंपनी या संस्थान द्वारा यह गड़बड़ी की गई होती तो क्या प्रशासन का रवैया उस समय भी ऐसा ही होता।