हलधर किसान। श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग पर गाड़ियों की लगी लंबी क़तारों की वजह से सेब मंडियों में देर से पहुंच रहे हैं. राजमार्ग पर लग रहा लंबा वक़्त, इनके सड़ने या बुरी अवस्था में मंडियों में पहुंचने की वजह तो बन ही रहा है, ये इनकी क़ीमतों को भी प्रभावित कर रहा है.लेकिन इन दिनों बाज़ार में कश्मीर के सेब के दामों में आई गिरावट की मुख्य वजह सिर्फ़ यही नहीं है. कश्मीर के किसानों और व्यापारियों का कहना है कि ईरान से आ रहे सेब, कश्मीर के सेबों की गिरती क़ीमतों का असली कारण हैं. असल में, बीते एक वर्ष से भारतीय बाज़ार में ईरान से सेब आ रहे हैं. इसके बाद से ही कश्मीर के सेब किसानों, व्यापारियों में मायूसी की लहर छाई हुई है.इस साल फ़रवरी के महीने में भी कश्मीर के सेब व्यापारियों और किसानों ने इस पर अपनी चिंता ज़ाहिर करते हुए भारत सरकार से इस बाबत ध्यान देने का आग्रह भी किया था.श्रीनगर के परिमपोरा फल मंडी में अपने सेबों की पेटियां क़रीने से रख रहे किसान फ़ारूक़ अहमद राठेर का परिवार वहां के हार्वन इलाक़े में दशकों से इस फ़सल (सेब) को उगाता आया है. उन्हें अब इस बात की काफ़ी चिंता है कि ईरान से भारत आ रहा सेब उनके फ़सल की बाज़ार को खाता जा रहा है.
फ़ारूक़ अहमद के मुताबिक़, उनके बाग़ों में क़रीब 4,000 सेब की पेटियों की पैदावार हो जाती है. वे कहते हैं, “कस्टम ड्यूटी अदा किए बग़ैर ईरान से सेब भारत की मंडियों में आ रहे हैं. अगर ये सिलसिला जारी रहा तो हमें बड़े नुक़सान का सामना करना पड़ेगा.”
फ़ारूक़ कहते हैं, “जिस तरह अमेरिका के माल पर कस्टम ड्यूटी लगाई जाती है, उसी तरह ईरान के सेब पर भी लगनी चाहिए. जब टैक्स लगेगा तो नतीजा ये होगा कि ईरान का सेब न यहां कम क़ीमतों में पहुंचेगा और न ही सस्ते में मिलेगा. उस स्थिति में हमें भी सेब की बेहतर क़ीमतें मिलेंगी.”बीते वर्ष कश्मीर के किसानों और व्यापारियों के संगठन ‘द कश्मीर वैली फ्रूट ग्रोअर्स-डीलर्स यूनियन’ ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र में लिखा कि अफ़ग़ानिस्तान और दुबई से आने वाले ईरानी सेब पर फ़ौरन प्रतिबंध लगाया जाए.
इसमें लिखा गया था कि अगर ईरानी सेब को भारत के बाज़ार में आने से नहीं रोका गया, तो जम्मू-कश्मीर और हिमाचल में सेब की खेती पर निर्भर किसानों को भारी नुक़सान उठाना पड़ेगा.
साथ ही ये भी लिखा गया कि ईरानी सेब यहां के किसानों के लिए बड़ी तबाही साबित हो सकते हैं.
इस पत्र में इसका ज़िक्र भी किया गया कि कश्मीर के ग़रीब किसान वहां के कोल्ड स्टोर्स में अपनी सेब की फ़सल को रखते हैं, ताकि सीज़न ख़त्म होने के बाद वो इसे बेचकर अच्छी क़ीमतों का लाभ उठा सकें. लेकिन इस दौरान बाज़ार में ईरान के सेब आ जाते हैं, जिससे कश्मीर के सेब की क़ीमतें गिर जाती हैं.