चुनाव से पहले गाय को मिला राज्यमाता का दर्जा, महाराष्ट की शिंदे सरकार ने लिया फैसला 

चुनाव से पहले गाय को मिला राज्यमाता का दर्जा

हलधर किसान | भारतीय समाज में जहां 80 फीसद लोग कृषि कार्यों से जुड़े हुए हैं वहां एक आदर्श घर की अर्थव्यवस्था के केंद्र में एक गाय होती है, जो उसे सामान्य समय में ही नहीं, अकाल और दुर्भिक्ष के समय में भी सहारा देती है. महात्मा गांधी कहते हैं देश का सुख और समृद्धि गौ-रक्षण के साथ जुड़ी हुई है, इसलिए पुरातन संस्कृति में ऋषि मुनियों ने सांसारिक जीवन का त्याग किया लेकिन गौ का त्याग नहीं किया. कई सौ साल तक भारत पर राज करने के बाद मुगलों को भी इस बात का एहसास हो गया था कि भारतवर्ष में गाय बहुसंख्यक हिन्दू आस्था से जुड़ी हुई है. 

महाराष्ट्र सरकार ने विधानसभा चुनाव के ऐलान से ठीक पहले सोमवार को कई बड़े फैसलों पर मुहर लगा दी है. सरकार ने देसी गाय को राज्यमाता का दर्ज भी दे दिया है. इसके साथ-साथ सरकार ने देसी गायों को पालने के लिए सब्सिडी योजना की शुरुआत को भी मंजूरी दे दी है.

चुनाव से पहले गाय को मिला राज्यमाता का दर्जा

देसी गाय की संकटग्रस्त नस्ल पुंगनूर को दुलारते हुए, हाल में पीएम नरेंद्र मोदी और यूपी के सीएम योगी की तस्वीरें खूब वायरल हुई थीं। अब महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे का देसी गायों को लेकर प्रेम छलका है। वैदिक काल से चले आ रहे गायों के महत्व पर विचार करते हुए, महाराष्ट्र सरकार ने एक आधिकारिक अधिसूचना जारी करके सोमवार को देसी गायों  को ‘राज्यमाता-गोमाता’  का दर्जा दिया है।
ऐतिहासिक महत्व के साथ-साथ जिन कारकों को आधार पर देसी गायों को ‘राज्यमाता-गोमाता’ का दर्जा दिया गया है, उनमें मानव पोषण  में देसी गाय के दूध   के महत्व, आयुर्वेदिक और पंचगव्य उपचार एवं जैविक खेती में गाय के गोबर का उपयोग शामिल है। राज्य कृषि, डेयरी विकास, पशुपालन और मत्स्य विभाग द्वारा जारी सरकारी प्रस्ताव में यह बात कही गई है

चुनावों से पहले बड़ा फैसला

एक अधिकारी ने कहा कि राज्य विधानसभा चुनावों से पहले आया यह फैसला भारतीय समाज में गाय के आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करता है। उन्होंने कहा कि यह भारत के सांस्कृतिक परिदृश्य में सदियों से गायों की अभिन्न भूमिका को उजागर करता है।  यह निर्णय लेकर, राज्य सरकार ने गाय के दूध के साथ-साथ इसके गोबर के कृषि लाभों को भी रेखांकित किया है, जो मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाता है और बेहतर फसल उत्पादन सुनिश्चित करके मानव पोषण में योगदान देता। 

भारत में पाई जाने वाली देसी गाय की नस्लें

देसी नस्ल की गायों का डेयरी उद्योग   में विशेष योगदान है। करनाल स्थित राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो  ने देसी गाय की 50 से अधिक नस्लों को सूचीबद्ध किया है। गाय की ये नस्लें स्थानीय जलवायु के अनुरूप खुद को ढालना जानती हैं और इन्हें बेहतर दुग्ध उत्पादन के लिए भी जाना जाता है। 
देसी गायों की इन नस्लों में कृष्णा वैली, वेचुर गाय, लाल सिंधी, बचौर, पूर्णिया गाय, गंगातीरी, पोनवार, खेरीगढ़, केनकथा, बरगूर, कंगायम, पुंगनूर, बिंझारपुरी, कोसली, बद्री, लद्दाखी गाय, गिर नस्ल, कांकरेज, मेवाती, राठी, साहीवाल और थारपारकर प्रमुखता से शामिल हैं।

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