||  गुरु पूर्णिमा विशेष  ||*

गुरु पूर्णिमा

*गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर: ।*

*गुरुर्साक्षात परंब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।।*

हलधर किसान खरगोन। आज की पूर्णिमा *गुरु पूर्णिमा ।* वर्ष भर के बारह महीनों की पूर्णिमाओं में यह पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा आषाढ़ माह में आने वाली , इसलिए आषाढ़ी पूर्णिमा  । देवशयनी एकादशी के पश्चात आने वाली पुर्णिमाओं में प्रथम पूर्णिमा । 

  काल गणना के अनुसार एक माह की 30 दिनों अथवा तिथियों को दो पक्षों में विभाजित किया गया है । कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष । प्रत्येक पक्ष 15 दिन का । कृष्णपक्ष की अंतिम तिथि *अमावस* तथा शुक्लपक्ष की अंतिम तिथि *पूर्णिमा* । इस तरह एक वर्ष के 12 माह में 12 अमावस कथा 12 पूर्णिमा होती है । यह अलग-अलग 12 माह की 12 पुर्णिमाएं भी अपने-अपने महत्व के अनुसार विभिन्न नाम से जानी जाती है । जो कि निम्न अनुसार है –

  •     चैत्र मास की पूर्णिमा को *चैती पूर्णिमा* कहते हैं । इसी पूर्णिमा के दिन श्री हनुमान जी का जन्म हुआ था इसलिए इस पूर्णिमा पर श्री हनुमान जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है ।   
  •   वैशाख मास की पूर्णिमा को *बुद्ध पूर्णिमा* कहते हैं । 
  •   ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को *देव स्नान पूर्णिमा* एवं *वट सावित्री पूर्णिमा* भी कहते हैं । 
  •   माघ मास की पूर्णिमा को *माघी पूर्णिमा अथवा बत्तीसी पूर्णिमा* कहते हैं । 
  •   आषाढ़ माह की पूर्णिमा को *आषाढ़ी पूर्णिमा  गुरु पूर्णिमा अथवा व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं ।* 
  •   श्रावण माह की पूर्णिमा को *श्रावणी पूर्णिमा व रक्षाबंधन पूर्णिमा* कहते हैं ।
  •   भादौ मास की पूर्णिमा को *श्राद्ध पूर्णिमा* कहा जाता है । 
  •   आश्विन माह की पूर्णिमा *शरद पूर्णिमा* कहलाती है । 
  •   आश्विन माह की पूर्णिमा को *त्रिपुरा पूर्णिमा* कहते हैं ।
  •   मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा को *मोक्षदायिनी पूर्णिमा* कहा जाता है । 
  •   पौष माह की पूर्णिमा को *शाकंभरी पूर्णिमा* कहते हैं । 
  •   फाल्गुन मास की पूर्णिमा को *बसंत पूर्णिमा अथवा होली पूर्णिमा भी कहते हैं ।* 

      *( बारह महीनों की बारह पुर्णिमाओं का विस्तृत विवरण यथासमय पूर्णिमाओं पर किया जाना ही संभव होगा । अभी विषयांतर हो जाएगा , इसलिए आज केवल गुरु पूर्णिमा संबंधी विचार )।*

 गुरु पूर्णिमा को विशेष रूप से *व्यास पूर्णिमा* भी कहा जाता है । देश के विभिन्न भागों में इस पूर्णिमा को अलग-अलग नामों से जाना जाता है । आज की ही इस आषाढ़ी पूर्णिमा से निरंतर कार्तिक पूर्णिमा तक चार महीने साधक , संत  , जति – यति , ऋषि , मुनि , चातुर्मास करते हैं । अपनी इंद्रियों को बहिर्मुकता से हटाकर अंतर्मुख करते हैं । जप – तप , संयम , ध्यान , धारणा से अपनी आध्यात्मिक उन्नति करने के मार्ग पर पहला कदम रखते हैं । 

मान्यता अनुसार आज की इस आषाढ़ी  पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था इसलिए इस पूर्णिमा को *व्यास पूर्णिमा* भी कहते हैं और यह पूर्णिमा वेदव्यास जी को समर्पित है । आज की इस आषाढी पूर्णिमा के ही दिन महर्षि वेदव्यास जी ने *ब्रह्मसूत्र* लिखना प्रारंभ किया था । वेदव्यास जी ने इसी ब्रह्मसूत्र ग्रंथ में छोटे-छोटे सूत्रों के माध्यम से वेदों का सार भर दिया , तथा मनुष्य मात्र को सत मार्ग पर चलने एवं उसका परमार्थिक कल्याण हो , ऐसी  युक्तियां सूत्रों के माध्यम से प्रकट कर दी । जैसे – ब्रह्मसूत्र का प्रथम सूत्र है –

*अथाऽतो ब्रह्म जिज्ञासा ।*  हे साधक , हे भाई , हे मित्र , हे मनुष्य – यदि तुझे इस मनुष्य जन्म में कुछ जानना ही है तो उस ब्रह्म को जान ले । जिसको जाने बिना सब कुछ जाना हुआ व्यर्थ हो जाता है , और सारा मनुष्य जीवन व्यर्थ हो जाता है । इसीलिए आज का दिन व्यास पूजन का दिन है , गुरु पूजन का दिन है । *व्यास* वह है जो केंद्र में रहते हुए अपनी परिधि के चारों दृष्टिपात करते हुए नियंत्रण रखता है । गुरु का अर्थ होता है *गु* अर्थात *अंधकार* , *रु* अर्थात प्रकाश  ।

  गुरु पूर्णिमा विशेष 
महेश कुमार सोहनी खरगोन ।

जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए वह *गुरु*। इसीलिए आज के दिन गुरु शिष्य परंपरा अनुसार गुरुओं और शिक्षकों का सम्मान किया जाता है । *शिक्षक* वह है जो हमें लौकिक शिक्षा दे , हमें अक्षर ज्ञान कराये , जो हमें सामाजिक , भौगोलिक ऐतिहासिक  एवं सांसारिक स्थितियों से अवगत कराये । लेकिन गुरु वह है जो हमें अध्यात्म के मार्ग पर ले जाते हुए हमारे मन की काम क्रोध लोभ मोह आदि गुत्थियों को सुलझाने का प्रयास करें । हमें सांसारिक एवं लौकिकता समझाते हुए परमार्थ का महत्व बता दे  , अथवा परमार्थ को समझाते समझाते लौकिकता की तुच्छता बता दे ,वही  गुरु कहलाने के अधिकारी हैं तथा *गुरु पद* पर आसीन होने के अधिकारी हैं । गुरु पद अपने आप में बहुत ही महत्वपूर्ण पद है , सनातन संस्कृति में गुरु को ईश्वर के तुल्य अथवा ईश्वर से भी बड़ा माना गया है ।

स्वयं ईश्वर ने जब-जब भी अवतार लिए तब-तब उन्होंने गुरुओं की महत्ता बढ़ाने के लिए गुरुओं के द्वार पर जाकर शिक्षा पाई है । सनातन संस्कृति में अनादि काल से गुरु शिष्य परंपरा चली आ रही है । राजा दशरथ के भी गुरु थे गुरु वशिष्ट जी , राजा जनक के भी गुरु थे अष्टावक्रजी , विवेकानंद के भी गुरु थे रामकृष्ण परमहंस  , मीरा के भी गुरु थे संत रविदास  , रविदास के भी गुरु थे काशी के पंडित रामानंद , रामानंद के गुरु थे राघवानंद , तुलसीदास जी के भी गुरु थे नरहरिदास , नाभाजी के भी गुरु थे अग्रदासजी , अग्रदास जी के भी गुरु थे कृष्णदास पयहारी ,  कृष्णदास के भी गुरु थे अनंतानंद जी , कृष्ण के भी गुरु थे सांदिपनी , रामजी के  भी गुरु थे वशिष्ठ जी । इसीलिए गुरु को भगवान से भी बड़ा पद दिया गया है । गुरु और भगवान दोनों सामने आ जाए तो प्राथमिकता के आधार पर पहले गुरु को ही प्रणाम करने का आदेश है । क्योंकि गुरु ही शिष्य को ईश्वर को ईश्वर होने की पहचान कराता है । 

*गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर ।*

*गुरु: साक्षात परब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवे नमः ।।*

        आज की गुरु पूर्णिमा *कबीर जयंती* के नाम से भी जानी जाती है संत कबीर ने भी गुरु के बारे में कहा है –

*गुरु धोबी शिष्य कपड़ा साबुन सिरजनहार ।* 

*सुरत सिला पर बैठकर निकले मैल अपार ।।* 

            यह गुरु पूर्णिमा उन गुरुओं को , उन व्यासों को समर्पित है जो सदैव अध्यात्म में रमण करते हैं । जिनका एक हाथ संसार की परिस्थितियों में और दूसरा हाथ परमात्मा में होता है । जो कदम कदम पर अपने शिष्य को प्यार से  , पुचकार से , डांट डपट कर  हाथ पकड़ कर आध्यात्मिक उन्नति की ओर आगे ले जाए वही गुरु *सतगुरु* हैं । 

इसीलिए कहा गया है  –

*सतगुरु मेरा सूरमा करे शब्द की चोट ।*

*मारे गोला प्रेम का हरे भरम की कोट ।*

*गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है , गढ़ी गढ़ी काढ़े खोट ।*

*अंदर हाथ सहाय दे बाहर चोटम चोट ।।*

       आज के दिन ऐसे सभी  व्यासों के प्रति गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए समस्त सद्गुरुओं को , परम गुरुओं को महान गुरुओं को नमन है , दंडवत् प्रणाम है । चाहे वे इस संसार में प्रत्यक्ष हों अथवा अनंत व्योम में विचरण कर रहे हों । हम उन समस्त गुरुओं से प्रार्थना करते हैं कि हे गुरुओं , यदि आप धरा पर नहीं आते  तो हम बिना आग के ही ईर्ष्या में जलते रहते , बिना पानी के ही चिंताओं में डूबे रहते और अपने जीवन को व्यर्थ करते रहते । आपकी कृपा हम पर बनी रहे और हम सद्विचार , सत्कर्मों एवं सत्प्रवृत्तियों में लगे रहें और हम भी आपके शिष्य बनकर सतशिष्य ही कहलाने के अधिकारी हों । 

       गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर हमारी यही प्रार्थना । 

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