रसायनिक नही जैविक खेती की ओर कर रहे रुख उच्च शिक्षित युवा

Arahr dal

युवा किसान ने जैविक तरीके से तैयार कि तुअर की फसल, 1 क्विंटल में देती है 70 क्विंटल उत्पादन

हलधर किसान। मप्र के खरगोन जिले के एक युवा किसान रजत डंडीर ने शहर से करीब 10 किमी दूर स्थित हवाई पट्टी से सटे अपने खेत पर देसी अरहर की एक ऐसी प्राजाति संरक्षित की है, जिसे वे जैविक तरीके से तैयार कर रहे है।

इस फसल की खासियत है कि यह निमाड़ी किस्म की देसी तुअर के मुकाबले तीन गुना अधिक उत्पादन देने के साथ ही इसमें कीट- पतंग सहित अन्य रोग लगने की आशंका कम होती है। इस अरहर से एक साल में एक एकड़ रकबे में करीब 70 क्विंटल उत्पादन का अनुमान लगाया है, हालांकि शुरुआत आधे एकड़ खेत से की है।

डंडीर संपन्न कृषक परिवार से ताल्लूक रखते है। उन्होंने एमएससी तक पढ़ाई के बाद नौकरियों की तलाश में न जाकर अपनी पारंपरिक खेती में हाथ बंटाना शुरु किया है और अब वे अपने खेत में प्रयोग के तौर पर कई नवाचार कर रहे है। इसमें पिता सहित परिवार के अन्य लोग भी उसके इस प्रयास में सहयोग दे रहे है।

रजत ने अपने विशाल खेत के आधा एकड़ क्षेत्र में जैविक तरीके से महाराष्ट्र से लाया 5 किलो तुअर का बीज लगाया है, जिसका सकारात्मक परिणाम सामने आया है। खेत में करीब 8 फीट ऊंची फसल लहलहा रही है। डंडीर ने बताया यह बीज उन्होंने अपने परिचित के खेत में लहलहाती फसल देखकर बुलावा। 

निमाड़ी किस्म से अलग वैरायटी है यह तुअर

डंडीर ने अपने खेत में जो बीज लगाया है वह देसी तुअर से अलग वैरायटी है। महाराष्ट्र से बुलवाया यह बीज टी- 50 नाम से जाना जाता है, जिसका उत्पादन में दाना लाल होने के साथ ही देसी तुअर से अधिक उत्पादन देता है। फली में मोटा दाना होने के साथ ही 5 से 6 दाने होते है जबकि देसी तुअर में 3 से 4 दान वह भी कम आकार के होते है। वही पौधे में देसी तुअर का फूल पीला होता है जबकि महाराष्ट्र के बीच का दाना लाल है। 

35 क्विंटल उत्पादन का अनुमान

डंडीर ने बताया कि फसल अब पककर तैयार होने की स्थिति में है। उन्हें अनुमान है कि करीब 35 क्विंटल से अधिक उत्पादन होगा। बाजार में जैविक उपज का दाम फिलहाल 11 हजार रुपए प्रति क्विंटल है। डंडीर ने बताया कि जैविक फसल का बाजार में दाम अच्छा मिलने के साथ ही स्वास्थ्य के लिए लाभ दायक होने के चलते वह अपने खेत में जैविक तरीके से फसल उत्पादन का प्रयास कर रहे है।

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सरकार भी जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है। उन्होंने तुअर फसल में रसायनिक खादो का उपयोग न करते हुए जैविक तरीके से दवाईयां बनाकर छिडकांव किया है। नीम तेल, गुड, गौमुत्र से खुद दवाईयां तैयार की और खेत में इस्तेमाल करते हैं। जैविक तरीके से तरह.तरह के फसलों से होने वाले आय से किसानों की आमदनी दोगुनी होने का सपना साकार हो सकता है।

बगीचा भी कर रहे तैयार

डंडीर ने अपने 110 एकड़ के विशाल खेत में कई तरह के प्रयोग किए है। वर्तमान में वे बगीचे का निर्माण भी कर रहे है, जिसमें इंडोनेशिया से लाए जाम, बैंगलौर का आम का पौधा भी लगाया है। इनकी खासियत यह है कि महज 1 साल के भीतर यह पौधे फल देने लगे है, इनकी ऊंचाई भी महज 4 से 6 फीट है।

डंडीर ने बताया किसान हाईब्रिड और विदेशी बीजों का खेल समझ गए हैं। वो अब देसी बीज ही अपना रहे हैं क्योंकि चाहे पानी ज्यादा बरसे या सूखा पड़े हमारे देसी फसल तैयार हो जाती है लेकिन हाईब्रिड बीज वाली फसलें मौसम में ज्यादा अंतर आने पर बर्बाद हो जाती हैं। 

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