जलवायु परिवर्तन से खतरे में इंसान

जलवायु परिवर्तन रोकने में इच्छाशक्ति की कमी (1)

एमिसंश की रिपोर्ट में खुलासा, जलवायु परिवर्तन की मार झेल रही दुनिया को कॉप-२७ से उम्मीदें

हलधर किसान (अंतर्राष्ट्रीय)। धरती की आबोहवा यानी जलवायु के संकटों पर निगाह डालने से पता चलता है कि बीते एक साल में ही दुनिया में काफी उथल.पुथल हो गई है। कोरोना वायरस के कारण दुनिया भर में लगे प्रतिबंधों का धरती की जलवायु पर एक सकारात्मक असर हुआ था।

उम्मीद की जा रही थी कि इन सार्थक तब्दीलियों से सबक लेते हुए पटरी पर लौट रही अर्थव्यवस्थाएं विकास का ऐसा रास्ता चुनेंगी, जिसमें धरती के सुंदर भविष्य की परिकल्पनाएं साकार हो जाएंगी।  लेकिन पहले तो अमेरिका.चीन के बीच तनातनी ने माहौल बिगाड़ा।

बाद में रूस.यूक्रेन, इजरायल. गाजा  युद्ध में छिड़ी जंग ने रही.बची कसर पूरी कर दी। जलवायु परिवर्तन पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों ने दावा किया है कि जलवायु परिवर्तन की मार झेल रही दुनिया के नजरिये से देखें तो संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में दुबई में होने वाला कॉप-२८ विश्व जलवायू शिखर सम्मेलन  एक महत्वपूर्ण प्रयास माना जाता है।

खास तौर से यह देखते हुए कि बीते एक साल में भारतीय उपमहाद्वीप से लेकर कई यूरोपीय देशों ने भीषण गर्मी और बाढ़ की ऐतिहासिक त्रासदी झेली है।  

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने अपनी एमिशन गैप रिपोर्ट जारी की है। इसमें दुनिया को चेतावनी दी है की अगर वक्त रहते सभी देश अपने उत्सर्जन में कटौती करने की प्रतिबद्धताओं को बढ़ाकर और ज्यादा नहीं करते हैं तो सदी के अंत तक ग्लोबल वार्मिंग पूर्व.औद्योगिक स्तर से २.५.२.९ डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगी। 

जलवायु परिवर्तन रोकने में इच्छाशक्ति की कमी

माह के अंत में दुबई में सुल्तान अहमद अल.जबर की अध्यक्षता शुरू होने जा रहे जलवायु शिखर सम्मेलन से पहले जारी की गई  एमिशन गैप रिपोर्ट २०२३ ब्रोकेन रिकॉर्ड नामक यह रिपोर्ट बताती है कि दुनिया का तापमान नई ऊंचाई पर पहुंच गया।

अगर सिर्फ पेरिस समझौते के तहत मौजूदा प्रतिज्ञाओं को बरकरार रखा जाता है, तो दुनिया खतरनाक तापमान वृद्धि के रास्ते पर चली जाएगी।

जब तक दुनिया के सभी देश अपनी मौजूदा प्रतिबद्धताओं से आगे नहीं बढ़ेंगे, सदी के अंत तक ग्लोबल वार्मिंग पूर्व औद्योगिक स्तर से केवल ३ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रह सकती है। इस तरह के परिणाम जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए तीव्र प्रयासों की तत्काल आवश्यकता पर जोर देते हैं।

यूएनईपी के कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन ने जलवायु परिवर्तन के सार्वभौमिक प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए कहा दुनिया का कोई भी इंसान या अर्थव्यवस्था जलवायु परिवर्तन से अछूता नहीं है, इसलिए हमें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, वैश्विक तापमान में वृद्धि और चरम मौसम जैसी बातों के संदर्भ में रेकॉर्ड स्थापित करना बंद करना होगा।

इससे बचने के लिएए रिपोर्ट मौजूदा दशक में मिटिगेशन यानी उत्सर्जन की रोकथाम करके दुनिया को ग्लोबल वार्मिंग से बचाने के प्रयासों को पर्याप्त रूप से मजबूत करने का आह्वान करती है।

इन प्रयासों की प्रभावशीलता एमिशन गैप को कम करने, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान के अगले दौर में साल २०३५ के लिए अधिक महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को सक्षम करने में निहित है। ऐसे उपायों से नेट जीरो प्रतिज्ञा प्राप्त करने की संभावना भी बढ़ जाती है, जो वर्तमान में लगभग ८० प्रतिशत वैश्विक एमिशन को कवर करती है। यह रिपोर्ट कुछ चिंताजनक आंकड़े प्रस्तुत करती है,

जिसमें इस वर्ष अक्टूबर तक पूर्व.औद्योगिक स्तर से १.५ डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान वाले ८६ दिनों का रिकॉर्ड भी शामिल है। सितंबर अब तक का सबसे गर्म महीना दर्ज किया गया है, जिसमें वैश्विक औसत तापमान पूर्व.औद्योगिक स्तर से १.८ डिग्री सेल्सियस ऊपर पहुंच गया।

रिपोर्ट राष्ट्रों के लिए अपनी जलवायु प्रतिज्ञाओं को तत्काल मजबूत करने की महत्वपूर्ण आवश्यकता को रेखांकित करती है।  

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