3,000 हेक्टेयर में हो रही कमलम (ड्रैगन फ्रूट) की खेती

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एमआईडीएच योजना के तहत पांच वर्षों में 50,000 हेक्टेयर तक बढ़ने के आसार

हलधर किसान। भारत में कमलम फल की खेती तेजी से बढ़ रही है और कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, मिजोरम और नागालैंड के किसानों ने इसकी खेती करना प्रारंभ कर चुके हैं। वर्तमान में, भारत में ड्रैगन फ्रूट की खेती का कुल क्षेत्रफल 3,000 हेक्टेयर से अधिक है जो घरेलू मांग को पूरा करने में सक्षम नहीं है, इसलिए भारतीय बाजार में उपलब्ध ड्रैगन फ्रूट का अधिकांश हिस्सा थाईलैंड, मलेशिया, वियतनाम और श्रीलंका से आयात किया जाता है।
भारत में कमलम का आयात 2017 के दौरान 327 टन की मात्रा के साथ शुरू हुआ था, जो 2019 में तेजी से बढ़कर 9,162 टन हो गया है और 2020 और 2021 के लिए अनुमानित आयात क्रमशः लगभग 11,916 और 15,491 टन है। 2021 के लिए इसका अनुमानित आयात मूल्य लगभग 100 करोड़ रुपये था। ड्रैगन फ्रूट रोपण के बाद पहले वर्ष में आर्थिक उत्पादन के साथ तेजी से फिर से बढ़ता है और अगले 3-4 वर्षों में पुनः पूर्ण उत्पादन प्राप्त होता है। यह फसल लगभग 20 वर्ष तक उगाई जा सकती है। रोपण के 2 वर्षों के बाद औसत आर्थिक उपज 10 टन प्रति एकड़ है। वर्तमान में बाजार दर 100 रुपये प्रति किलो फल है, इसलिए प्रति

व्यापक रूप से पिताया के रूप में जाना जाने वाला कमलम या ड्रैगन फ्रूट औषधीय गुणों से परिपूर्ण एक बारहमासी कैक्टस है, जिसका मूल उत्पादन दक्षिणी मैक्सिको, मध्य अमेरिका और दक्षिण अमेरिका में प्रारंभ हुआ। व्यापक रूप से दुनिया में दक्षिण-पूर्व एशिया, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, कैरेबियन द्वीप समूह, ऑस्ट्रेलिया में उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में कमलम या ड्रैगन फ्रूट की खेती की जाती है। अंग्रेजी में ड्रैगन फ्रूट कहे जाने वाला पिटाया अलग-अलग नामों से लोकप्रिय है जैसे मेक्सिको में पिठैया, मध्य और उत्तरी अमेरिका में पिटया रोजा, थाईलैंड में पिथाजाह और भारत में संस्कृत नाम कमल से इस फल को कमलम कहा जाता है। इसे “21वीं सदी का चमत्कारिक फल” भी कहा जाता है। वर्तमान में इसकी खेती कम से कम 22 उष्णकटिबंधीय देशों में की जा रही है। ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि फ्रांसीसियों ने लगभग 100 वर्ष पहले वियतनाम में फसल की शुरुआत की थी और इसे राजा के लिए उगाया गया था। बाद में, यह पूरे देश के धनी परिवारों में भी लोकप्रिय हो गया।

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