असम में कीटों के हमले से धान की फसल चौपट, 28 हजार हेक्टेयर फसल को पहुंचा नुकसान 

असम में कीटों के हमले से धान की फसल चौपट, 28 हजार हेक्टेयर फसल को पहुंचा नुकसान

बढ़ता तापमान फसलों के लिए बढ़ रहा चिंता का कारण

हलधर किसान। असम में इन दिनों धान फसल पर कीटों के प्रकोप किसानों सहित सरकार के लिए चिंता का विषय बन गया है। यहां 15 जिलों में करीब 28 हजार हेक्टेयर धान की फसल को नुकसान पहुंचा है।

यह फसलें पकने के करीब और कटाई के लिए तैयार थी, तभी कीटों ने इन पर हमला कर दिया। इस हमले को लंबे समय तक गर्म तापमान रहने के कारण माना जा रहा है।  

इस कीट को ईयर हेड कटिंग कैटरपिलर या धान की बाली काटने वाली इल्ली या आर्मीवर्म के नाम से भी जाना जाता है।

यह कीट पत्तियों को खाता है और फसलों में पौधों के आधार से बालियों को काट कर अलग कर देता है। इसकी वजह से अक्सर खेत ऐसा दिखता है मानों उसे मवेशियों ने चर लिया हो।

इसके प्रकोप के दौरान, कीट बड़ी तादाद में बढ़ जाते हैं और फसलों को खाने और हमला करने के लिए एक सेना की तरह एक खेत से दूसरे खेत में झुंड बनाकर घूमते हैं। 

विशेषज्ञों ने बताया कि राज्य में इस कीट की मौजूदगी की रिपोर्ट कई वर्षों से मिल रही थी, लेकिन यह पहला मौका है जब इतने बड़े पैमाने पर इन कीटों का हमला हुआ है।

उनका कहना है किए यह आंशिक रूप से लंबे समय तक लगातार गर्म तापमान के रहने की वजह से हुआ है। इस बारे में असम कृषि विश्वविद्यालय के पौध संरक्षण विभाग के मृदुल डेका का कहना है कि, बढ़ते तापमान के साथ शुष्क परिस्थितियां कीटों की आबादी में वृद्धि के लिए अनुकूल माहौल तैयार कर रही हैं।  

क्षेत्रीय मौसम विज्ञान केंद्र द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, 22 नवंबर 2023 तक राज्य के कम से कम सात जिलों में अधिकतम और न्यूनतम तापमान सामान्य से अधिक दर्ज किया गया।

बीज भंडार
बीज भंडार

वहीं गुवाहाटी में, अधिकतम तापमान 31.4 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया, जो वर्ष के इस समय के लिए सामान्य से साढ़े चार डिग्री सेल्सियस अधिक है। गौरतलब है कि गर्म होती दुनिया में, तापमान और बारिश में आता बदलाव दो ऐसे कारक हैं जो कीटों और बीमारियों के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

यह इन पर निर्भर है कि यह बीमारियां और कीट कैसे और कहां फैलते हैं। क्लाइमेट चेंज एंड सस्टेनेबल एग्रीकल्चर नामक पुस्तक में प्रकाशित 2017 के एक में कहा गया है कि वैश्विक तापमान में मामूली सी भी वृद्धि कीड़ों के जीवनचक्र को छोटा कर सकती है। इसकी वजह से न केवल कीटों की आबादी में बल्कि साथ ही इनकी पीढिय़ों में भी वृद्धि होगी। 

इसके साथ ही इनकी भौगोलिक सीमा, पनपने का मौसम बढ़ जाएगाए जिससे कीटों के आक्रमण का खतरा भी बढ़ जाएगा।

साथ ही प्रवासी कीटों के आक्रमण की आशंका भी बढ़ जाएगी।  भारत में, जहां दुनिया की 6.83 फीसदी कीट प्रजातियां रहती हैं, वहां तापमान बढऩे से वातावरण कीटों के लिए कहीं ज्यादा अनुकूल हो जाएगा। अनुमान है कि तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ उनका प्रसार 200 किलोमीटर उत्तर और 40 मीटर की ऊंचाई तक बढ़ सकता है। 

2016 में भी बाली काटने वाली इस इल्ली के द्वारा फसलों को हुए नुकसान की खबरें सामने आई थी, हालांकि वो केवल विशिष्ट क्षेत्रों तक ही सीमित थी।

वहीं इसके विपरीत इस साल राज्य के करीब आधे हिस्से में किसानों को अपनी फसलों के पूरी तरह बर्बाद होने का दंश झेलना पड़ा है। डेका ने बताया किए सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस बार कीटों का हमला उस समय हुआ है जब फैसले करीब.करीब तैयार थी,

जिससे किसानों को उबरने का मौका ही नहीं मिला  19 नवंबर को, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि सरकार लगातार संक्रमण पर नजर रखे हुए है। उन्होंने अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि प्रभावित किसानों को राष्ट्रीय फसल बीमा पॉलिसी और प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना के तहत लाभ मिले।

इस कीट का पहली बार हमला 1937 के दौरान तमिलनाडु में सामने आया था। इसके बाद 1957 में केरल और ओडिशा में छिटपुट रूप से इसे रिपोर्ट किया गया था।

लंबे समय तक गर्म तापमान रहने के कारण असम में फसलों पर कीटों का गंभीर हमला हो सकता है। इन कीटों की वजह से वहां कम से कम 15 जिलों में करीब 28,000 हेक्टेयर धान की फसल को नुकसान पहुंचा है। यह फसलें पकने के करीब और कटाई के लिए तैयार थी, तभी कीटों ने इन पर हमला कर दिया।

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