हलधर किसान। हर साल फसलों की कटाई के बाद पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के किसानों द्वारा जलाई गई पराली से प्रदूषण बढऩे की समस्या आम हो गई है। इस समस्या से निजात के लिए शासन. प्रशासन द्वारा कई प्रयास किए जा रहे है लेकिन अब तक सफलता नही मिली है। अब वैज्ञानिको ने पराली प्रदूषण से बचाव के लिए एक नया तरीका इजाद किया है, यह कितना कारगर होगा यह तो समय के साथ पता चलेगा।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद लुधियाना स्थित केंद्रीय कटाई उपरांत अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संस्थान के वैज्ञानिकों ने पराली से बायो थर्मोकॉल बनाने में सफलता हासिल की है। इस तकनीक से प्रोडक्ट बनाने के लिए अब बाकायदा एक औद्योगिक इकाई से एमओयू भी हो चुका है।
आईसीआर के प्रमुख वैज्ञानिक डॉक्टर रमेश चंद कसाना ने पराली से बायो थर्मोकोल बनाने और उसके इस्तेमाल की जानकारी दी।
डॉ कसाना ने बताया कि धान और गेहूं की पराली से आसानी से बायो थर्मोकोल तैयार किया जा सकता है। इसे तैयार करने में 15 से 20 दिन का समय लगता है। सबसे पहले पराली को एक सेंटीमीटर के आकार में काटकर उसका भूसा तैयार किया जाता हैण् उसके बाद उसे जीवाणु रहित करके स्पॉन नामक पदार्थ मिलाया जाता है, जो अनाज से बनता है। स्पॉन के पनपने से एक तरफ जहां पराली का रंग सफेद हो जाता है। वहीं, इसमें मौजूद तत्वों की वजह से ये अच्छी तरह से चिपक जाती है। उसके बाद उसे सांचे में डालकर कोई भी आकार दिया जा सकता है।
पराली से तैयार किया गया बायो थर्माकोल रसायन से बनाए गए थर्मोकोल की तरह ही हल्का होता है लेकिन यह पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल यानी कुदरती तौर पर नष्ट हो सकता है। इसके इस्तेमाल से पर्यावरण को किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं होगा। केमिकल से बनाए गए थर्मोकोल के इस्तेमाल से पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचता है, क्योंकि यह कुदरती तौर पर नष्ट नहीं होता। वैज्ञानिक अब इसे छत की सीलिंग के रूप में इस्तेमाल करने के लिए भी प्रयोग कर रहे हैं। इसके अलावा भवन निर्माण में भी पराली को इंसुलेशन के तौर पर इस्तेमाल करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
पराली बन सकती है कमाई का साधन
किसान पराली को ना जलाएं, इसके लिए वैज्ञानिक और राज्य सरकारें पराली के इन-ृसीटू और एक्स -सीटू प्रबंधन यानी पराली को खेत में ही या फिर खेत के बाहर इस्तेमाल करने के तरीकों पर काम कर रही हैं। अकेले पंजाब में 7.5 मिलियन एकड़ क्षेत्रफल पर धान की फसल उगाई जाती है, जिससे हर साल 22 मिलियन टन पराली पैदा होती है। सरकार का दावा है कि 60 फीसदी पराली यानी 12 मिलियन टन पराली को खेतों में ही नष्ट करने के प्रयास किया जा रहे है। एक अनुमान के मुताबिक, पंजाब में हर साल 10 मिलियन टन पराली जला दी जाती है, जिससे पर्यावरण को काफी नुकसान होता है।
