बीज कानून पाठशाला अंक: 4 “उपभोक्ता मामलों में बीज उत्पादक बरते सावधानियाँ”

Beej kanun

आर.बी. सिंह. बीज कानून रत्न, एरिया मैनेजर (सेवानिवृत) नेशनल सीडस कारपोरेशन लिमिटेड 

सेवानिवृत्त आर.बी. सिंह 1

हलधर किसान विशेष – बीज धरा का गहना है। कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता में अन्य कारकों के साथ बीज मुख्य कारक है। अतः खाद्य समृद्धि के लिए चीज का उत्तम ही नहीं सर्वोत्तम एवं चरित्रवान होना आवश्यक है। वीज कानूनों जैसे बीज अधिनियम 1966, बीज नियम-1968, बीज नियन्त्रण आदेश-1983 तथा अन्य, बीज गुणवत्ता के साथ खिलवाड़ करने वाले बीज उत्पादक, बीज विक्रेता को कठोरत्तम दण्ड देता है, परन्तु बीज का निम्न गुणवत्ता के कारण हुई फसल क्षति पूर्ति करने का कोई प्रावधान नहीं है। लोक सभा में प्रस्तावति बीज विधेयक (Seed Bill 2019) में कृषक क्षतिपूर्ति का स्पष्ट प्रावधान किया गया है परन्तु नये बीज अधिनियम के अन्तर्गत उपजे क्षति पूर्ति के विवादों का निपटारा भी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अनुसार ही होगा।

बीज उद्योग में आपस में गला काट प्रतियोगिता (Through-cut Competition) के कारण कोई बीज उत्पादक किसानों में अपनी शाख (Credit) को दाँव पर नहीं लगाऐगा। अतः बीज उत्पादन करते हुए बीज उद्यमी भारत सरकार द्वारा पारित भारतीय न्यूनतम बीज प्रमाणीकरण मानकों (IMSCS) की पालना करता है, अपने अनुसन्धान की पहचान के लिए निदशोलय उद्योग एवं विज्ञान अनुसंधान (DISR) से मान्यता लेता है। कृषि विभाग से बीज विक्रय हेतु लाइसैंस लेता है कहने का अर्थ है कि सभी सावधानियों, नियम, कानूनों की पालना कर बीज उत्पादन एवं प्रामणीकरण कर बीज बीज कृषकों को उपलब्ध करवाता है परन्तु बीज उत्पादन में कुछ ऐसे कारक हैं जो बीज उत्पादकों के बश से परे है। इसके अलावा बीज उत्पादक अपने भरसक प्रयासों से उत्तम किस्म का बीज, उच्च गुणवत्ता अंकुरण, भौतिक शुद्धता, अनुवांशिक शुद्धता के साथ उपलबध करवाता है और फिर कृषक की जिम्मेदारी बनी है कि वह नवीनतम तकनीकि का उपयोग कर राज्य / राष्ट्र में उत्पादन स्तम्भ बनाए परन्तु कृषक नयी तकनीकियों को शीघ्र न अपना पाने के कारण कृषक उत्पादक – गठबन्धन दरक जाता है और वह बीज की गुणवत्ता के विरूद्ध विवाद का कारण बनता है।

वर्तमान में शिक्षा एवं श्रव्य दृशय (Audio Visual) साधनों के कारण कृषक वर्ग में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता आई है, और इसीलिए दिन प्रति दिन बीज की निम्न गुणवत्ता के लिये विवाद उपजते हैं, और ऐसे विवादों की संख्या बढ़ रही है।

मानव प्रवृति है कि उसे निःशुल्क ज्ञान दिया जाए तो वह उसका महत्त्व नहीं समझता। बीज उद्योग में भी हू-ब-हू यही हो रहा है। मैं समय-समय पर बीज उद्यमियों को बीज कानूनों की विधाओं पर लेखों द्वारा सचेत करता हूँ। बीज कानून की 4 पुस्तकें सम्पादित करवाई और बांटी परन्तु उनसे अपना बीज कानून ज्ञान नहीं बढ़ाया। कृषक विभाग द्वारा आपत्ति उठाने और उसके प्रति बीज और उपभोक्ता संरक्षण शीर्षक के अन्तर्गत मैं कुछ लेख लिख रहा हूँ जिसकी चौथी कड़ी प्रस्तुत है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पर एक पुस्तक भी सम्पादित कर रहा हूँ जिसमें विभिन्न न्यायालयों द्वारा निर्णित बीज के मामलों का उल्लेख होगा ताकि सचेत व्यक्ति रूलिंग से संदर्भ लेकर अपने वकील के ज्ञान में वृद्धि कर अपना केस न्यायालय में दृढ़ता से प्रस्तुत कर सके। मैं इस कड़ी में कुछ विषयों की सूचना देना चाहता हूँ जिनसे बीज उत्पादक सावधानी अपना कर अपने वाद की पैरवी दृढ़ता से कर सकते हैं:-

1. कृषक के वकील के नोटिस का उत्तर न देना :-

बीज के कारण कृषक की फसल क्षति होने पर वह न्यायालय में वाद दायर करने से पूर्व अपने वकील से नोटिस दिलवाता है। कई बार कृषि विभाग बीज अधोस्तर (Sub Standard) होने पर नोटिस जारी करता है। बीज व्यापारी उसका उत्तर नहीं देते हैं। बीज व्यापारियों को वकील के नोटिस का अपने वकील या किसी माहिर व्यक्ति से यथोचित उत्तर दिलवाना चाहिए। ध्यान रहे कि उपभोक्ता न्यायालय में दी जाने वाली अपनी पुष्ठ दलीलों के पत्ते नहीं खोलने चाहिए। वकील के नोटिस का जवाब न देना भी सेवा में कमी (Deficiency in Service) माना जाता है जो नकारात्मक पहलु प्रदर्शित करता है।

2. बिल न देना :-

बीज विक्रेताओं के दिल दिमाग में यह बात घर कर गई है कि बीज या किसी कृषि आदान का बिल न देने से कन्ज्यूमर कोर्ट में विवाद दायर नहीं होता। इसीलिये बीज विक्रेता बिल जारी नहीं करते या एस्टीमेट (Estimate) या पैड पर बीज बिल के रूप में पर्ची कृषक को पकड़ा देते हैं। कभी-कभी बीज विक्रेता अपने विजिटिंग कार्ड पर बीज का विवरण लिख देते हैं। यह प्रथा गलत है और कोई बचाव नहीं कर पाती क्योंकि जो बीज का रैपर, थैला है उस पर बीज उत्पादक कम्पनी का नाम, पता लिखा है, लेबल नम्बर लिखा है, उसके माध्यम से विक्रेता पकड में आजायेगा। वेद प्रकाश गोपालदास बनाम देवीलाल मंडी डबवाली की शिकायत में सिरसा उपभोक्ता संरक्षण न्यायालय ने फर्म का बिल न होने पर भी देवीलाल की शिकायत स्वीकार की और विक्रेता पर रुपये 45,760.00 की क्षति पूर्ति का आदेश पारित किया। अपील संख्या 481/2005 का 07.09.2020 में राज्य आयोग ने निर्णय देते हुए जिला फोरम का आदेश ही मान्य किया।

3. लॉट नम्बर लिखना :-

बीज विक्रेताओं को पक्का बिल देने में आना-कानी नहीं करनी चाहिए बल्कि बिल में कृषक का पूरा नाम, पिता का नाम, गौत्र, गाँव, तहसील, जिला, बीज की फसल, किस्म, वर्ग एवं लॉट नम्बर पूरा लिखें। बिल पर वैद्यता अवधि (Validity) न लिखें। संज्ञान में आया है कि बीज उत्पादक कम्पनियाँ अपना बीज विक्रेताओं के पास पूरे लॉट नम्बर और लेबल नम्बर लिखकर भेजती है परन्तु बीज विक्रेता ग्राहकों की बिक्री की अधिकता का बहाना बना कर मात्र “शक्तिवर्धक का 1121, सुपर सीड का मक्का चारे वाला या सुपर भारत बीज कम्पनी का गेहूँ WH-1105° बिल पर लिखते हैं, यह तरीका गलत है क्योंकि इन कम्पनियों के इन किस्मों के अनेक लॉट होंगे और शिकायती किसान के केस में बीज व्यापारी / बीज विक्रेता अपने एरिया में अन्य किसानों को वही लॉट दिया और उनके यहाँ फसल ठीक हुई या कोई शिकायत नहीं थी, के पक्ष में उपभोक्ता न्यायालय में तब तक पुष्ट दावा नहीं कर सकते जब तक उस एरिया के सभी किसानों के बिलों में कम्पनी द्वारा भेजे गये बीज का वही लॉट न हो। न्यायालय को दृढ़ प्रमाण चाहिए। अतः सभी बीज उत्पादक कम्पनियाँ एक अभियान चलाए और विक्रेताओं को बाध्य करे कि प्रत्येक बिल पर पूरा लॉट नम्बर डाले अन्यथा उन्हें चेतावनी दे कि बिल पर पूरा लॉट नम्बर न होने पर विवाद होने पर सहयोग नहीं मिलेगा।

4. विक्रय लाइसैंस :-

बीज विक्रय लाइसैंस के बिना बीज विक्रय करना खुद में अपराध है लेकिन बीज उत्पादक कम्पनियों द्वारा यह सुनिश्चित करना कि बीज आपूर्ति के समय विक्रेता ने लाइसैंस नवीनीकृत करवा लिया है, सम्भव नहीं है। बिना लाइसेंस नवीनीकृत करवाये बीज विक्रय की जिम्मेदारी स्वयं विक्रेता की है परन्तु ऐसे मामले सामने आये हैं कि यदि विक्रेता का लाइसैंस वैद्यता अवधी में नहीं है तो वह उस बीज उत्पादक कम्पनी को भी नोटिस जारी कर देता है जिसका विक्रेता बीज बेच रहा है। अतः उत्पादकों को सलाह दी जाती है कि प्रत्येक बीज पर अंकित करें “Sale of this seed is subjected to validation of Licence of Dealer”। इसी प्रकार बीज उत्पादक कम्पनियाँ विक्रेताओं को प्रिंसीपल सर्टिफिकेट जारी करती और उनको कम्पनी का अधिकृत विक्रेता बनाती है। ऐसे प्रिंसीपल प्रमाण-पत्र पर भी लिखें: “This authorization is subjected to validity of Licence of dealer”. यहाँ यह उल्लेख करना आवश्यक है कि बीज उद्योग में प्रिंसीपल सर्टिफिकेट का प्रावधान नहीं है। हरियाणा, हिमाचल, बिहार सरकारों ने प्रिंसीपल प्रमाण-पत्र के लिए बाध्य नहीं किया जाता। आन्ध्र प्रदेश सरकार ने 25.06.1994 से लाइसैंस लेने के लिये प्रिंसीपल प्रमाण पत्र की बाध्यता को खत्म किया हुआ है। उच्च न्यायालयों के निर्णय भी बीज उत्पादकों के पक्ष में है। मात्र साहस की आवश्यकता है। साहसी व्यक्ति के हाथ ही तलवार होते हैं परन्तु कायर आदमी की रक्षा तो मिसाईल भी नहीं कर पाती। संघ के माध्यम से ही इन विषयों को उठाएं एवं समाधान खोजें।

मैं बीज हूँ मिट्टी में दफन होकर भी एक सजर की तसवीर ही बन जाऊंगा। प्रमाणीकरण ने इतना गुलबदन कर दिया कि किसान की तकदीर ही बन जाऊंगा।

सजर = पेड़

गुलबदन = फूल जैसे अंगों वाला चरित्रवान / गुणवत्तायुक्त…

:: लोकोक्ति::
 अद्भुत है बीज का अंकुरण
 स्वयं को होम कर, करता नया सृजन।

– सौजन्य से – 
श्री संजय रघुवंशी, प्रदेश संगठन मंत्री, कृषि आदान विक्रेता संघ मप्र 

श्री कृष्णा दुबे, अध्यक्ष, जागरुक कृषि आदान विक्रेता संघ इंदौर

प्रतिक्रिया-

श्री कृष्णा दुबे अध्यक्ष जागरूक कृषि आदान विक्रेता संघ जिला इंदौर

श्री दुबे

साथियों मैं यहां अपने विचार रखना चाहूंगा क्योंकि मैं भी इस व्यवसाय में पिछले 50 वर्षों से अच्छे से बीज व्यवसाय को समझता हूं अक्सर ऐसा होता है कि किसी भी किसान भाई के यहां किसी बीज ने अपनी गुणवत्ता के अनुसार अपने उत्पादन की क्षमता के अनुसार कार्य नहीं किया हो तो वह किसान भाई उपभोक्ता फोरम की शरण में न्यायालय की शरण में जाता है और जब वहां पर यह मामला जाता है कई बार देखा गया है कि जो माननीय न्यायाधीश जी हैं या उपभोक्ता फोरम के जो अध्यक्ष महोदय हैं उन्होंने ऐसे फैसले भी दिए हैं जो की कृषि आदान व्यापारी या बीज उत्पादक कंपनी के फेवर में नहीं रहे इसके लिए मैं यहां कहना चाहूंगा कि जब भी कभी इस प्रकार के कोई मामले आए तो इसमें जो है कृषि वैज्ञानिक भाइयों की भी सलाह ली जाए और उनके सामने भी इस मामले को रखा जाए की वास्तविकता क्या है किस कारण से यह बीज अपनी गुणवत्ता के अनुसार ठीक से कार्य नहीं कर पाया ठीक से फसल नहीं दे पाया जिस समय यह फसल किसान के खेत में खड़ी थी उस समय मौसम की स्थिति क्या थी गलती किसान की रही है या वास्तविकता क्या है इसको जानना बहुत जरूरी होता हैआनन-फानन में जल्दी में किसी भी प्रकार का निर्णय नहीं लिया जाए क्योंकि यह जरूरी नहीं है माननीय न्यायाधीश जी या उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष महोदय हर फील्ड में परिपक्व हो     🙏🏻🙏🏻

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