हलधर किसान। अखिल भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान कार्यकर्ता गोष्ठी में इस वर्ष गेहूं की 24 नई किस्मों को विभिन्न क्षेत्रों के लिए किसानों को व्यापारिक उत्पादन हेतु जारी करने की अनुशंसा की गई। तीन दिवसीय संगोष्ठी के आखिरी सत्र में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल के निदेशक डॉ. जी.पी. सिंह ने यह जानकारी दी। समापन सत्र की अध्यक्षता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर विजय सिंह तोमर ने की।
संगोष्ठी में डॉ. जी.पी. सिंह ने बताया कि इस वर्ष 27 किस्मों के प्रस्ताव चयन समिति के पास आए थे, जिनमें से 24 किस्में अलग-अलग जलवायु क्षेत्रों के लिए अनुशंसित की गई। इन किस्मों में अच्छी दाने की गुणवत्ता, उत्पादन क्षमता, रोग प्रतिरोधकता, औद्योगिक उत्पादन जैसे बिस्किट, दलिया आदि निर्माण के लिए उपयोगिता के मूल्यांकन को आधार बनाया गया।
जो किस्में अनुशंसित की गई हैं उसमें सेंट्रल जोन (मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान तथा छत्तीसगढ़) के लिए एच आई 1650 तथा एम.ए.सी.एस. 6768 को सिंचित क्षेत्र तथा समय पर बुवाई हेतु अधिक उत्पादन तथा दाने की गुणवत्ता के आधार पर, एच आई 8830 और डीडी डब्लू 55 ड्यूरम गेहूं वैरायटी को उत्पादन क्षमता तथा ब्लैक और ब्राउन रस्ट के प्रति प्रतिरोधकता तथा सीजी 1036 और एच आई 1655 को सीमित सिंचाई तथा समय पर बुवाई की परिस्थिति में अधिक उत्पादन तथा अच्छे दाने की गुणवत्ता होने के आधार पर अनुशंसित किया गया।
समापन सत्र में संबोधित करते हुए डॉ. आर. के. सिंह अतिरिक्त महानिदेशक ने कहा कि गेहूं और जौ की नई किस्मों के उत्पादन में नवीन विकसित किस्मों के वैज्ञानिकों द्वारा सजगतापूर्वक मूल्यांकन का बहुत अधिक महत्व है। संचालक अनुसंधान सेवाएं डॉ. संजय कुमार शर्मा ने विश्वविद्यालय को इस महत्वपूर्ण आयोजन का अवसर देने हेतु कृषि अनुसंधान परिषद का धन्यवाद किया, वही परियोजना निदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह ने सभी का आभार व्यक्त किया।