ग्लाइफोसेट का किसान नही कर सकेंगे उपयोग, सरकार ने लगाया प्रतिबंध

हलधर किसान। सरकार ने मानव और जानवरों के स्वास्थ्य संबंधी खतरों को देखते हुए हर्बिसाइड ग्लाइफोसेट के उपयोग को प्रतिबंधित कर दिया है। सरकार ने अपने आदेश में कहा है कि इससे कई तरह के खतरे पैदा हो रहे हैं। एग्रो-केमिकल फेडरेशन ऑफ इंडिया (एजीएफआई) ने इस संबंध में किए गए वैश्विक अध्ययन और नियामक निकायों का हवाला देते हुए इस फैसले का विरोध किया है। ग्लाइफोसेट और इसके फॉर्मूलेशन का इस्तेमाल व्यापक रूप से किया जाता है। वर्तमान में ये यूरोपीय संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित 160 से अधिक देशों में इस्तेमाल किए जाते हैं। दुनियाभर के किसान कई दशक से सुरक्षित और प्रभावी खरपतवार नियंत्रण के लिए इसका उपयोग कर रहे हैं।क्या कहा गया है आदेश में
25 अक्टूबर को कृषि मंत्रालय द्वारा जारी एक अधिसूचना में कहा गया है कि ग्लाइफोसेट का उपयोग प्रतिबंधित है और कीट नियंत्रण ऑपरेटरों (पीसीओ) को छोड़कर कोई भी व्यक्ति ग्लाइफोसेट का उपयोग नहीं करेगा। कंपनियों को ग्लाइफोसेट और उसके डेरिवेटिव के उत्पादन और इस्तेमाल के लिए दिए गए पंजीकरण प्रमाणपत्र को वापस करने के लिए कहा गया है। इसके अलावा लेबल पर बड़े अक्षरों में इससे संबंधित चेतावनी को शामिल किए जाने का प्रावधान है। कंपनियों को प्रमाण पत्र वापस करने के लिए तीन महीने का समय दिया गया है, अन्यथा कीटनाशक अधिनियम, 1968 के प्रावधानों के अनुसार उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। आदेश में कहा गया है कि राज्य सरकारों को इस आदेश के क्रियान्वयन के लिए कदम उठाने चाहिए।

ग्लाइफोसेट को प्रतिबंधित करने वाली अंतिम अधिसूचना 2 जुलाई, 2020 को कृषि मंत्रालय द्वारा मसौदा जारी किए जाने के दो साल बाद आई है। आपको बता दें कि बिक्री और उपयोग पर रोक लगाने के लिए केरल सरकार की एक रिपोर्ट के बाद मसौदा जारी किया गया था। इस कदम का विरोध करते हुए एग्रो-केमिकल फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसीएफआई) के महानिदेशक कल्याण गोस्वामी ने कहा कि ग्लाइफोसेट-आधारित फॉर्मूलेशन सुरक्षित है। भारत सहित दुनियाभर में नियामक प्राधिकरणों द्वारा इसका परीक्षण और सत्यापन किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि केवल कीट नियंत्रण ऑपरेटरों (पीसीओ) के माध्यम से ग्लाइफोसेट के उपयोग को प्रतिबंधित करने का कोई तर्क नहीं है। इन ऑपरेटरों की सेवाएं ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूद नहीं हैं। इसके उपयोग को प्रतिबंधित करने से किसानों को असुविधा होगी और खेती की लागत भी बढ़ेगी।

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