टेसू के फूलों ने बढ़ाई प्रकृति खूबसूरती
खरगोन। आई. आई रे बसंत बहार कुहुक बोले कोयलिया..छाया निराला निखार, अब आई बसंत बहार…….
रंगों का उत्सव मनाए जाने में अभी समय है, लेकिन प्रकृति ने इसकी तैयारी वसंत ऋतु के आगमन के साथ ही कर ली है। इन दिनों नगर के मुख्य मार्गो सहित ग्रामीण क्षेत्रों में टेसू.पलाश के फूलों की बहार आई हुई है, यह फुल बरबस ही पर्यटन स्थलों सहित सड़क किनारे से गुजरने पर राहगिरों का ध्यान अपनी ओर खिंच रहे है। सड़क किनारे लगे पलाश के पेड़ फूलों से लदे होकर सड़कों की रौनक बढ़ा दी है।
नगरी क्षेत्र में भी कई जगह ये फूल हर किसी को लुभा रहे हैं। संदेश यही है कि रंगों का उत्सव नजदीक आ रहा है। पलाश के पेड़ पर लगे पत्तों से वातावरण इन दिनों ऐसा लगने लगा है, मानो पेड़ को किसी ने दहकते अंगारे लगा रखे हो।
आमतौर पर वसंत ऋतु के समय में ये फूल खिलने लगते हैं। होली के आसपास ये फूल चरम पर आकर जंगल की खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में पलाश के फूल लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने लगे हैं। आज भले ही हमें केमिकल युक्त रंग, गुलाल की होली का पर्व मनाते हैं,

लेकिन एक समय था, जब टेसू.पलाश के फूल से बने रंगों से ही होली खेली जाती थी। पलाश के फूल को होली के लिए एक दिन पहले एकत्रित कर उसे मिट्टी के पात्र में रखकर गर्म किया जाता था। इससे प्राकृतिक रंग तैयार होता था, लेकिन अब जमाना बदल गया है।
पलाश औषधिय गुणों से भरपूर होता है
पलाश की छाल को उबालकर सेवन करने से पथरी और यकृत रोग दूर होते हैं। पलाश के तने के रेशे से बनी रस्सी काफी मजबूत होती है। इसके पत्ते से दोने व पत्तल बनाए जाते थे। पूर्व में ये लोगों की आजीविका के प्रमुख साधन रहे हैं।