हलधर किसान। मस्टर्ड ऑयल प्रोड्यूसर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (मोपा) के एक प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात कर उनसे खाद्य तेलों और तिलहन पर वर्तमान में लागू स्टॉक सीमा हटाने और वायदा बाजार को फिर शुरू करने की मांग की है. प्रतिनिधिमंडल में मोपा के संयुक्त सचिव अनिल चतर के साथ सुरेश नागपाल और हेमंत गोयल शामिल थे. चतर ने कहा कि खाद्य तेलों के भाव 4 महीने में 40 से 45 फीसदी घटकर कोरोना महामारी के पहले स्तर पर पहुंच गया है. परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं को अब सस्ते भाव पर खाद्य तेल उपलब्ध हो रहा है. इसलिए स्टॉक लिमिट हटाई जानी चाहिए.तीनों ने मंत्री को ध्यान दिलाया कि पिछले 3 वर्षों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों से खाद्य तेल मार्केट को आत्मनिर्भर बनाने के लिए तिलहन फसलों का अधिक उत्पादन करने का अनुरोध कर रहे हैं. उनकी अपील पर देश के किसानों ने बड़े पैमाने पर सरसों सहित अन्य तिलहन फसलों का उत्पादन भी किया, जिसके कारण भारत के खाद्य तेलों का आयात 150 लाख टन से घटकर 135 लाख टन पर आ गया. इससे हम आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढ़े.
स्टॉक सीमा की वजह से नुकसान
मोपा के संयुक्त सचिव अनिल चतर ने मंत्री से कहा कि खाद्य तेलों के भाव अब काफी घट गए हैं. परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं को अब सस्ते भाव पर खाद्य तेल उपलब्ध हो रहा है. मगर किसानों को यदि तिलहन का उचित भाव नहीं मिलता है तो ऐसे में फिर कहीं आयात की नौबत न आ जाए. इससे हमारे प्रधानमंत्री का तिलहन के क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने के सपने की मुहिम को धक्का लगेगा. आज तेल तिलहन पर स्टॉक सीमा की वजह से उद्योग एवं व्यापार जगत डरा हुआ सा है. कई उद्योग बंद पड़ने लगे हैं.
वायदा बाजार के लिए मोपा का तर्क
इसलिए यह जरूरी है कि भारतीय वायदा व्यापार में खाद्य तेल, तिलहन को प्रतिबंधित नहीं किया जाए. इससे विदेशी बाजारों में तेजी आएगी जिससे हमारा भारतीय बाजार प्रभावित प्रभावित होगा. कोरोना काल में लॉकडाउन की वजह से सप्लाई चेन में बाधा आई थी. केंद्र सरकार ने इस बाबत निरंतर प्रयास भी किए लेकिन परिणाम उम्मीद के मुताबिक नहीं रहे. उन्होंने कहा कि वायदा बाजार तो खाद्य तेलों में स्थिरता प्रदान करने का हथियार है और सट्टेबाजी रोकने में अहम भूमिका निभाता है.
किसानों पर पड़ा है असर
चतर ने कहा कि पूरे विश्व में सभी कृषि जिंसों में वायदा कारोबार किसी भी विपरीत परिस्थिति में चालू रहता है. उस पर प्रतिबंध नहीं रहता क्योंकि विश्व में किसान एवं उपभोक्ता के बीच प्राइस बेस का उचित रूप से समन्वय रहता है. उन्होंने कहा कि वायदा बाजार पर प्रतिबंध लगने के कारण इसका विपरीत प्रभाव किसानों एवं उपभोक्ताओं पर पड़ा है. वह असमंजस की स्थिति में रहता है कि उसका माल किस भाव पर बिकेगा और उपभोक्ताओं को यह पता नहीं लगता उसे किस भाव पर माल खरीदना पड़ेगा. इतना ही नहीं, वायदा बाजार पर प्रतिबंध लगने से भारत सरकार के राजस्व में भारी कमी देखने को मिलती है.
कम हो सकती है तिलहन की पैदावार
यदि इस दिशा में समय से उचित कदम नहीं उठाए गए तो तिलहन की पैदावार में कमी की संभावना हो सकती है और इसका सीधा लाभ विदेशी बाजारों को मिल जाएगा. ज्ञात हो कि केंद्र सरकार ने इससे पहले सोयाबीन आयल, सोयाबीन सीड, चना, ग्वार, ग्वारगम, अरंडी आदि कृषि जिंसों के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगाया था किंतु उचित समय पर सरकार ने इसे फिर से बहाल कर दिया, जिसके परिणाम अनुकूल रहे.
खाद्य तेलों के वायदा बाजार को शुरू करने की मांग
मोपा के संयुक्त सचिव ने कहा कि तेल और तिलहन के स्टॉक सीमा फरवरी 2022 में कुछ महीनों के लिए लगाई गई थी और बाद में इसे दिसंबर 2022 तक बढ़ा दिया गया. उन्होंने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि किसानों, उपभोक्ताओं एवं उद्योग जगत के हित में सरकार को इसके स्टॉक सीमा को तुरंत खत्म करना चाहिए. तेल, तिलहन यानी सरसों, सोयाबीन सोया तेल और क्रूड पाम तेल के वायदा बाजार को चालू कर देना चाहिए. इससे किसानों और उपभोक्ताओं समेत उद्योग जगत को राहत मिलेगी और सरकार के राजस्व में वृद्धि होगी.
