हलधर किसान नई दिल्ली। मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीसीडी) द्वारा जारी एक ताजा रिपोर्ट में चौंकाने वाली जानकारी दी गई है, जिसने दुनिया को सन्न कर दिया है। रिपोर्ट बताती है कि 2020 तक के तीन दशकों की इसके पूर्व के 30 वर्षों से तुलना पर पता चला है कि पृथ्वी की 77 प्रतिशत से ज्यादा जमीन को अधिक शुष्क जलवायु का सामना करना पड़ा है। इस दौरान वैश्विक शुष्कभूमि का क्षेत्रफल लगभग 43 लाख वर्ग किलोमीटर बढ़ गया, जिसमें अब विश्व का 40 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा आता है।
रिपोर्ट में दी गई चेतावनी
यह बढ़ोतरी भारत के एक तिहाई क्षेत्रफल से ज्यादा है। सऊदी अरब के रियाद में यूएनसीसीडी के 16वें सम्मेलन में लांच की गई रिपोर्ट यह यह चेतावनी देती है कि अगर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर लगाम लगाने के प्रयास विफल हुए, तो सदी के अंत तक धरती का तीन प्रतिशत नमी वाला हिस्सा भी शुष्कभूमि में तब्दील हो जाएगा। बीते तीन दशकों में शुष्कभूमि पर रहने वाले लोगों की संख्या भी दोगुनी होकर 230 करोड़ तक पहुंच गई है।
जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे नतीजों की कल्पना करें तो वर्ष 2100 तक करीब 500 करोड़ लोग शुष्कभूमि पर रहने को मजबूर होंगे। इन अरबों लोगों की ¨जदगी और रोजी-रोटी पर आने वाला संकट और ज्यादा गंभीर होगा। धरती के इन हिस्सों पर असरमौसम और जमीन में बढ़ती शुष्कता से सर्वाधिक प्रभावित होने वाले धरती के हिस्सों में यूरोप का 96 प्रतिशत क्षेत्र, पश्चिमी संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, ब्राजील, एशिया और मध्य अफ्रीका शामिल है।
भारत का बड़ा क्षेत्र भी शुष्कता की चपेट में
अगर देशों की सही जमीन के शुष्क में बदलने के आंकड़े प्रतिशत में लिए जाएं तो दक्षिणी सूडान और तंजानिया को सर्वाधिक नुकसान होगा। इसके साथ चीन भी अपने कुल क्षेत्रफल का सर्वाधिक हिस्सा शुष्क जमीन के रूप में परिवर्तित होते देखेगा। यहां रहते हैं सर्वाधिक लोग एशिया और अफ्रीका में दुनिया की शुष्क जमीन पर रहने वाली करीब आधी आबादी मौजूद है। जबकि शुष्क इलाकों में जनसंख्या घनत्व के मामले में कैलीफोर्निया, मिस्त्र, पूर्वी और उत्तरी पाकिस्तान, भारत का काफी बड़ा क्षेत्र और उत्तर-पूर्व चीन शामिल है।
उत्सर्जन से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रग्रीनहाउस गैस का अधिक उत्सर्जन होने पर मध्यपूर्वी अमेरिका, मध्य मेक्सिको, उत्तरी वेनेजुएला, उत्तरपूर्वी ब्राजील, दक्षिणपूर्वी अर्जेंटीना, समूचा मेडिटेरेनियन क्षेत्र, काला सागर का तट, दक्षिणी अफ्रीका का अधिकांश हिस्सा और दक्षिणी आस्ट्रेलिया में शुष्क जमीन के बढ़ने की भविष्यवाणी की गई है।
सूखा नहीं है शुष्कता
कभी कम बारिश होने पर सूखा पड़ जाता है, लेकिन शुष्कता इससे बिल्कुल अलग है और यह स्थायी और कठोर बदलाव है। सूखा तो खत्म हो जाता है। लेकिन जब किसी इलाके की जलवायु शुष्क हो जाती है, तो इसके अपनी पूर्व स्थिति में लौटने की क्षमता खत्म हो जाती है। सूखी जलवायु दुनिया के बड़े इलाके पर असर डाल रही है और इनमें अब पहले की तरह का मौसम नहीं होगा और यह बदलाव पृथ्वी को पुनर्परिभाषित कर रहा है।