एक हेक्टेयर में रोपे मालाबार के पौधे, छह साल बाद होगी 15 लाख की आमदनी

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हलधर किसान (शोध)। एक हेक्टेयर भूमि पर 10 फीट की दूरी पर 1,100 के करीब मालाबार नीम के पौधे रोपे जाएं, तो छह वर्षों में 15 लाख रुपये की कमाई हो सकेगी। छह वर्ष का पौधा होने पर इसे प्लाईवुड उद्योग में बेचा जा सकता है। यह खुलासा
उद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय नेरी हमीरपुर के वानिकी विभाग के मालाबार नीम पर किये गए शोध कार्य पूरा करने के बाद किया गया है।
साल 2017 में यह शोध शुरू हुआ था। किसान सफेदा व पॉपुलर जैसे पौधों के बजाय अब मालाबार नीम के पौधे लगाकर अपनी आर्थिक मजबूत कर सकेंगे। शोध के बाद वैज्ञानिकों ने यह पाया है कि 600 से 1800 मीटर तक के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में इस पौधे को आसानी से उगाया जा सकता है। इसके अलावा जहरीली हवा के दुष्प्रभावों को भी मालाबार नीम कम करेगा।
आमतौर पर किसान बंजर भूमि पर सफेदा व पॉपुलर के पौधे लगाते हैं। सफेदा पानी यानी नमी को सोख लेता है तो पॉपुलर के पत्तों के झड़ने से खेतों में फसल की पैदावार नहीं होती। लेकिन अब यदि एक हेक्टेयर भूमि पर 10 फीट की दूरी पर 1,100 के करीब मालाबार नीम के पौधे रोपे जाएं, तो छह वर्षों में 15 लाख रुपये की कमाई हो सकेगी। छह वर्ष का पौधा होने पर इसे प्लाईवुड उद्योग में बेचा जा सकता है। 10 वर्ष आयु का होने पर फर्नीचर इंडस्ट्री को इसे आसानी से बेचा जा सकता है। यह पौधा कृषि वानिकी के लिए उपयुक्त है। अगर किसान इसे फसल के बीच में भी रोपेगा, तब इसके पत्ते फसल के बीच में गिरते हैं तो खाद का काम करेंगे। यही नहीं, इसके पत्ते एंटी डरमाइटस (दीमक रोधी ) के रूप में भी काम करेंगे। मुख्य शोधकर्ता व वानिकी विभाग में कार्यरत सहायक प्रोफेसर डॉ. दुष्यंत कुमार शर्मा ने बताया कि वर्ष 2017 में वानिकी अनुसंधान केंद्र देहरादून ने मालाबार नीम की 10 प्रजातियां जारी की थीं।
उनमें से एक मेलिआ दुबिया नाम की प्रजाति के पौधे डॉ. वाईएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी सोलन को उपलब्ध हुए थे। इन्हें नेरी महाविद्यालय के लिए शिफ्ट करके शोध कार्य शुरू किया था। शोध के दौरान यह पाया गया कि यह पौधा किसानों के लिए पॉपुलर व सफेदे से अधिक लाभकारी हो सकता है। दावा किया कि राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार हुए शोध से पर्यावरण संरक्षण को लेकर भी बड़ी बात निकलकर सामने आई है। यदि इस पौधे को औद्योगिक क्षेत्रों में लगाया जाए तो उद्योगों से निकलने वाली जहरीली हवा के दुष्प्रभावों को भी कम करने की क्षमता रखता है। बद्दी-बरोटीवाला जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में आए दिन लेड, जिंक, कॉपर आदि जैसे हेवी मेटल हवा में रिलीज होते हैं जो वहां की मिट्टी में मिलकर अनाज को भी दूषित करते हैं। इसी वजह से कैंसर जैसी घातक बीमारियां अब ज्यादा होने लगी हैं। इसलिए इस स्थान पर इन पौधों का बहुत लाभ होगा। इसके लिए हाल ही में महाविद्यालय ने निदेशक पर्यावरण विज्ञान व बॉयोटेक्नोलॉजी शिमला को एक पत्र भी लिखा है।
शोध कार्य करने के लिए 10 लाख रुपये की फंडिंग मांगी गई है। डॉ. शर्मा ने कहा कि वैसे तो महाविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इसके ऊपर शोध करने में सफलता हासिल कर ली है लेकिन व्यावहारिक तौर पर भी औद्योगिक क्षेत्रों की मिट्टी लाकर गहन शोध करने भी आवश्यकता है। डीन डॉ. सोमदेव शर्मा ने कहा कि महाविद्यालय के वैज्ञानिक और विद्यार्थी शोध कार्यों में गहन रुचि दिखा रहे हैं। इसका लाभ किसानों व बागवानों को होगा।

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